क्या आप जानते हें, की
मोटापा बढाने या डाईविटिज"के
लिए जिम्मेदार
यह "अधिक भूख" क्यों लगती है?
सामान्य स्थिति
में तो
या भूख शरीर की आवश्यकता है। शरीर को जितना भोजन चाहिए वह मांगेगा ही। बच्चो का
बढता शरीर, कसरती और
खिलाडियों के लिए एनर्जी और पुष्ट मांस पेशियों की जरुरत इससे ही पूर्ति होती है।
पर आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद भी भूख लगती रहे, और उसका
उपयोग न होकर शरीर में एकत्र होती रहे, तो वह भूख नहीं एक रोग है|
जी हाँ
एसा भी होता है, विशेषकर जो दिनभर एक छोटी से जगह में बिना कोई शारीरिक परिश्रम
किये अपना समय
गुजारते हें। इस श्रेणी में घरेलू महिलाओं से लेकर दिन भर आफिस जेसे काम करने वाले
सभी स्त्री पुरुष हो सकते हें। उन्हें कोई रोग नहीं होता मजे से सब कुछ खाते पीते रहते हें, हर समय उन्हें भूख सताती है,
अत: कुछ न कुछ खाते रहना ही उनकी मज़बूरी होती है, यदि न खाए तो कमजोरी सी
प्रतीत होने लगती है, और वजन
दिन प्रति दिन बढता ही जाता है, और डाईविटिज आदि कई रोग भी हो
सकतें है।
क्यों
होता है एसा ?
इस बात
को समझने के लिए हमें कम्पूटर की प्रक्रिया को समझना होगा। कम्पूटर का उदाहरण
इसलिए क्योकि इस लेख के पाठक कम्पूटर की प्रक्रिया को भली भांति समझते
हें।
हमारा शरीर भी एक कम्पूटर की तरह से काम करता है।
सब कुछ जींस से मिले प्रोग्राम्स के अनुसार चलता है। जन्म के तुरंत बाद तक तो केवल
जींस या माता के सेट प्रोग्राम्स की तरह चलता है, पर जन्म
के बाद में
वातावरण/ पालन-पोषण/ रहनसहन/ आदि अन्य बातों का प्रभाव होने से, या कहें
तो, नए नए प्रोग्राम्स बनते रहने/ या वाईरस के द्वारा परिवर्तन कर दिए जाने से नई
व्यवस्था बनाने लगती है। विशेषकर तब जबकि वह व्यक्ति वयस्क होकर स्वसक्षम हो जाता है।
उसकी दिनचर्या उसके प्रोग्राम्स को परिवर्तित करने लगती है और उसी रूप में ढलने का
प्रयत्न करती है, जेसी
स्तिथी/ भोजन/ वातावरण/ रहनसहन आदि उसे दिया जा रहा है। इसी कारण हमें यह देखने
मिलता है, की हर व्यक्ति अपने आप में एक बिलकुल नया ही होता है। पर कुछ आदतें जेसे आराम तलबी
या कहें शरीर सुख के अनुसार ढल गई जीवन चर्या भी, इस मष्तिष्क रूपी कम्पूटर को पुनः प्रग्रामित भी कर देती है।
इन नए प्रोग्रामो
के चलते शरीर का हर भाग या ग्रंथियां भी नया व्यवहार करने लग जाती हें।
परिश्रम
या फिजिकल एक्टिविटी की कमी से इंसुलिन बनाने वाले बीटा सेल्स भी आराम करने के
इच्छुक होने लगते हें। इंसुलिन बनता तो है, पर काम नहीं करता। इसे ही इंसुलिन
रेजिस्टेंस कहते हें।
शरीर के
सेल्स और टिसुज को अपना काम करने के लिए एनर्जी चाहिए, वह अपनी डिमांड मष्तिष्क को
भेजता है, मष्तिष्क तुरंत
भूख के रूप में इंधन मांगता है, हम इसकी पूर्ति के लिए कुछ खाते हें। इसे एनर्जी
में बदलने वाला इंसुलिन इसे पूरी तरह एनर्जी में नहीं बदलता, क्योंकि उसमें ऐसी ही
आदत प्रग्रामित हो गई है।
शरीर की
आवश्यकता के अनुरूप भोजन खा लेने और पेट भर जाने के बाद
आमाशय मस्तिष्क को संकेत भेज देता है। इससे मस्तिष्क कुछ समय के लिए काम पूरा हुआ
समझ लेता है। पर इधर भोजन तो पहुच गया और शारीरिक प्रक्रिया ने उसे
पचाना भी प्रारम्भ कर दिया। पर एनर्जी नहीं बन पाने से, वह भोजन अन्य टिशुज
(मांस-पेशियों) के बीच जो स्टोर रूम का काम करते है में एकत्र हो तो गया, पर दूसरी
और सेल्स और टिशूज को पूरी एनर्जी नहीं मिली, इससे उन्होंने
अपना जरुरत का संकेत मष्तिष्क को भेजना जारी रखा| मष्तिष्क ने भोजन की आवश्यकता की वही प्रक्रिया फिर
से दोहरा दी। फिर
वही क्रिया शुरू| भूख-खाना- पचना और एकत्र
हो जाना। इस तरह से शरीर में चर्बी के रूप में भोजन का स्टोर बढता रहा शरीर
मोटा होता गया, पर
एनर्जी न मिल पाने से कमजोरी वेसी की वेसी ही।
|
और धीरे धीरे खाने के भी हैं लाभ |
जब तक थोडा बहुत इंसुलिन
काम करता रहा तब तक कुछ ठीक रहा पर जब पूरी तरह से इंसुलिन ने काम बंद कर दिया तो
परिणाम स्वरुप या पुरुस्कार के रूप में मिली "डाईविटिज"।
अब जरा पूरी
प्रक्रिया पर ध्यान दें,
हमने शारीरिक या फिजिकल कार्यों में कमी करके शारीर को नए रूप में
प्रोग्रमित कर दिया इससे ही मिला यह मोटापा और फिर "डाईविटिज" ।
और बस यह
बात यहीं पर
समाप्त नहीं हुई शरीर के इस नए प्रोग्राम ने जींस में भी
परिवर्तन किया जो अगली पीडी या संतानों को जन्म से ही यह "डाईविटिज"
रूपी सौगात
लिए हाजिर होने तैयार है।
फिर आखिर
हम करें तो क्या?
यह सवाल स्वयमेव
उठ खड़ा होता है, फिर वही
कम्पूटर का उदाहरण
सही फिट होता है। समय रहते की पुराने प्रोग्राम्स को हटा कर रिफ्रेश कर दिया
जाये! पर केसे? यह शरीर है, मष्तिष्क
है, इसमें
परिवर्तन करने के लिए फिर से नई आदतों को बनाना होगी, जिनके कारण अर्थात फिजिकल
एक्टिविटी की कमी ने इस स्तिथि का निर्माण किया उसे ही पुन: अपनाकर।
साथ ही
लगने वाली भूख को झुठलाकर या बर्दाश्त कर या उसे धोखा देकर अर्थात इसी प्रकार की
चीजें खाने दी जाये जिससे वे शारीर में एकत्र भी न हों और भूख मिट भी जाये हर बार
एसा करना भी जरुरी होगा। इसके लिए भोजन {देखें - मधुमेह के मरीजों को खानपान: }
या खाद्य पदार्थो के बजाय पानी /छाछ /नीबू पानी/काली (बिना
चीनी दूध की)
चाय/ अदि जेसी
चीजों का प्रयोग किया जाये। पेट के कुछ आसन/योग /प्राणायाम के
जरिये आराम से सोई इंसुलिन ग्रथियो को झकझोर कर जगाया जाये ताकि वे फिर सक्रिय हो सके
या रेजिस्टेंस की प्रवृत्ति छोड़ सकें।
पर जैसा
की पूर्व में लिखा है, समय रहते अर्थात पूरी "डाईविटिज"
बनने के पूर्व जब की मोटापे की शुरुवात हो चुकी थी, और भूख बार बार बहुत लगने लगी
थी, और खा लेने पर भी संतुष्टि नहीं मिल पा रही थी, या डाईविटिज"
जो मीठा नहीं खाने से कंट्रोल हो जाती थी, बस तब तक ही पर बाद में भी
एसा किया जाता रहा तो कुछ हद तक जींस को करप्ट होने से बचाया जा सकेगा|
साथ ही “डाईविटिज" अधिक
कष्टकारी नहीं हो पायेगी। इससे यह भी होगा की हमारे शरीर के स्टोर
रूम में जमा चर्बी का उपयोग होने लगेगा वह जल कर एनर्जी की पूर्ति करने लगेगी इससे
मोटापा भी कम होने लगेगा। डाईट बारे में अलग अलग व्यक्ति
अनुसार जानकारी विशेषज्ञ से ली जाना उचित रहैगा। प्रारभिक रूप से इस परिवर्तन के
लिए उपवास एवं व्रतों से शरीर का
कायाकल्प-चन्द्रायण व्रत जेसे प्रयोग भी अति
लाभकारी होते है । इससे शारीरिक परिवर्तन नियंत्रित कर पुन: प्रोग्रमित किया जा
सकता है।
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