Rescue from incurable disease

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लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

Nasal congestion or stuffy nose may be caused by the common cold or sinus infection etc. नाक बंद या भरी रहने का मतलब है पुराना जुकाम या साइनस आदि?

Nasal congestion or stuffy nose may be caused by the common cold or sinus infection etc. नाक बंद या भरी रहने का मतलब है पुराना जुकाम या साइनस आदि? - डॉ मधु सूदन व्यास
अक्सर नाक बंद है, या भरी रहती है, जैसी शिकायत लेकर कई व्यक्ति हमारे पास आते रहते हें|
नाक का बंद होना या रहना सामान्यत: प्रतिश्याय (कामन कोल्ड) के कारण होता है| हमेशा यह कष्ट बने रहना अधिकतर साइनस में संक्रमण से होता है|
नाक में होने वाला अवरोध अधिकांशत: भरी हुई, या बहती हुई नाक, साइनस में सूजन और दर्द, श्लेष्मा भरने से, और नाक के अंदर सूजन होने से होता है|
आम तोर पर यह प्रतिश्याय (सर्दी-जुकाम), फ्लू, के कारण होता है, सामान्यत: एक सप्ताह में ही ठीक हो सकने वाली होती है यह तकलीफ, परन्तु अधिक समय तक लापरवाही करने से और इस मिथक के कारण की जुकाम को स्वयं ठीक होना अच्छा है, सोचकर आवश्यक चिकित्सा न लेने पर श्लेष्मा रूपी मल लगातार भरा रहने से संक्रमण हो जाया करता है, यह संक्रमण पास ही स्थित अस्थि विवर (cavity) जिसे साइनस कहते हें में स्थाई रूप से रहने लगता है|  कुछ भाई लगातार घरेलु उपाय या फेसबुक आदि के चुटकुले आजमाते रहते है| लाभ मिल जाये तो ठीक पर जब यह कष्ट यदि एक सप्ताह के अन्दर ठीक न हो तो इसके लिए चिंता अवश्य करना चाहिए|
यदि प्रतिश्याय एक सप्ताह से अधिक समय तक बना रहे और साइनस में संक्रमण न हो तो इसका कारण किसी तरह की एलर्जी भी हो सकती है| 
नाक में एकत्र होने वाला यह श्लेष्मा जो समान्यत: अन्य प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं का कारण नहीं होता, इसीलिए अक्सर लोग इसके प्रति उदासीन बने रह कर लम्बे समय तक कष्ट उठाते हें, और सार्वजानिक स्थानों पर शर्मिंदगी का सामना भी करते हैं| अक्सर यह श्वास रोग भी उत्पन करता है|
आयुर्वेद के मान से यह एक “कफज रोग” है| यदि अधिक बढ़ जाता है, और जलन सूजन आदि लक्षण भी मिलने लगें तो इसका अर्थ है की पित्त भी रोग के कारणों में सम्मलित हो गया है| साथ ही दर्द भी होने लगे तो वात का अनुबंध हो जाने से त्रिदोषज रोग कहलायेगा|
आयुर्वेदिक चिकित्सा में दोषों की उपस्थिति का परीक्षण कर चिकित्सा की जाती है|
औषधीय चिकित्सा में कफ शामक द्रव्य देकर कफ को निकलना होता है| इसके साथ ही पचन-पाचन, विवंध आदि पेट की समस्याओं की चिकित्सा भी करनी होती है| यह किसी निष्णात आयुर्वेदिक चिकित्सक से ही करवाना चाहिए|
 प्रारम्भिक नवीन प्रतिश्याय की चिकित्सा में रोगी को एरंड तैल से उदर शोधन (जुलाब) देना चाहिए, षडविन्दु तैल नस्य, हरिद्राखंड, सेवन से ठीक हो सकता है| लाभ न होने पर वासवलेह, कंटकार्यवलेह, लक्ष्मीविलास रस, त्रिभुवन कीर्ति रस, संजीवनी वटी, आदि, आदि कई वैकल्पिक औषधियाँ रोगी, रोग, दोष आदि के अनुसार मात्रा, अनुपान,आदि समस्त विचार चिकित्सक द्वारा होना चाहिये, अन्यथा लाभ नहीं होगा, या हानि भी हो सकती है|   
यदि औषधि चिकित्सा से लाभ नहीं हो पा रहा है और रोग बार-बार हो रहा हो तो, यह एक कफ़ज रोग होने से पंचकर्म (शोधन) चिकित्सा से लाभ हो जाता है, शोधन से पित्त और वात का शमन भी हो जाता है| यह उर्द्व जत्रुगत रोग (कंधे से ऊपर का) है, इसलिए पंचकर्म “वमन कर्म” से अधिकांश रोगी शीघ्र स्वस्थ्य हो जाते हें|
यदि पित्त की अधिकता हो तो “विरेचन कर्म” भी करना चाहिए| चिकित्सा के अंतर्गत नस्य भी दिया जाता है|
पंचकर्म की चिकित्सा प्रक्रिया द्वारा जीर्ण औषधि से भी ठीक नहीं हो पाने वाला रोग मिट जाते है| साथ ही इससे चिकित्सा से मेटाबोलोज्म भी सुधरता है, जो एलर्जिक प्रभाव को भी नष्ट करता है, शरीर की रोग प्रतिकारक क्षमता में वृद्धि होने से साइनस का रोग हमेशा के लिए ठीक हो जाता है| रोगी यदि मोटा हो तो वजन कम होता है यदि दुबला हो तो शोधन के बाद वजन बढ़ भी जाता है| अन्य एसिडिटी, श्वास, आदि अनेक रोग भी इसी शोधन से ठीक हो जाते है| इसीलिए यह एक सर्वश्रेष्ट हानि रहित चिकित्सा है|

हमने अपने चिकित्सकीय जीवन काल में इनसे अनेक रोगियों को इन कष्टों से मुक्त किया है|     
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स्वास्थ है हमारा अधिकार १

हमारा लक्ष्य सामान्य जन से लेकर प्रत्येक विशिष्ट जन को समग्र स्वस्थ्य का लाभ पहुँचाना है| पंचकर्म सहित आयुर्वेद चिकित्सा, स्वास्थय हेतु लाभकारी लेख, इच्छित को स्वास्थ्य प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य विषयक जन जागरण करना है| आयुर्वेदिक चिकित्सा – यह आयुर्वेद विज्ञानं के रूप में विश्व की पुरातन चिकित्सा पद्ध्ति है, जो ‘समग्र शरीर’ (अर्थात शरीर, मन और आत्मा) को स्वस्थ्य करती है|

निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

चिकित्सक सहयोगी बने:
- हमारे यहाँ देश भर से रोगी चिकित्सा परामर्श हेतु आते हैं,या परामर्श करते हें, सभी का उज्जैन आना अक्सर धन, समय आदि कारणों से संभव नहीं हो पाता, एसी स्थिति में आप हमारे सहयोगी बन सकते हें| यदि आप पंजीकृत आयुर्वेद स्नातक (न्यूनतम) हें! आप पंचकर्म चिकित्सा में रूचि रखते हैं, ओर प्रारम्भ करना चाह्ते हैं या सीखना चाह्ते हैं, तो सम्पर्क करेंं। आप पंचकर्म केंद्र अथवा पंचकर्म और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे अर्श- क्षार सूत्र, रक्त मोक्षण, अग्निकर्म, वमन, विरेचन, बस्ती, या शिरोधारा जैसे विशिष्ट स्नेहनादी माध्यम से चिकित्सा कार्य करते हें, तो आप संपर्क कर सकते हें| सम्पर्क समय- 02 PM to 5 PM, Monday to Saturday- 9425379102/ mail- healthforalldrvyas@gmail.com केवल एलोपेथिक चिकित्सा कार्य करने वाले चिकित्सक सम्पर्क न करें|

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