Rescue from incurable disease

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लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

The Gandoosh or Kaval :- How, When,How long or By-which?

The Gandoosh or Kaval :- How, When,How long or By-which?
गंडूष या कवल:- कैसे, कब, कितनी देर, और किन औषधि से आदि से करें?      

 पूर्व लेख में आपने यह  पड़ा   

गंडूष या कवल धारण करना सभी के लिए एक सस्ती, आसान, सर्व सुलभ और श्रेष्ट चिकित्सा :-/ गंडूष और कवल में अन्तर:- /गंडूष और कवल धारण के सामान्य लाभ:- / कई रोगों  में गंडूष और कवल धारण बड़ा उपयोगी और रोग नाशक है: - /गंडूष के चार प्रकार - देखें क्लिक लिंक - Ganoosh or Kaval (Gargling or Rinsing of mouth) is An inexpensive, easy, accessible and best treatment for all.
गंडूष या कवल केसे कब और कितनी देर, और किन ओषधि द्रव आदि से  करें :- 
 सभी प्रकार के गंडूशों और कवल में घी, तेल, दूध, शहद, सिरका, मद्द्य (alcohol), मांस-रस, फलों और ओषधियों आदि के स्वरस (Juice), या उनके क्वाथ[1] कांजी आदि का प्रयोग किया जाता है| कई आचार्यों ने  गाय आदि पशुओं के मूत्र से भी गंडूष करने के बारे में लिखा है| पहले हम जानेंगे की केसे, कब, करें गंडूष या कवल :-   
गंडूष - गंडूष में मुहं को इतना अधिक भर लिया जाता है, की उस द्रव को मुहं में हिलाया न जा सके| 
कवल - जब द्रव को मुहं में हिलाया जा सकता हो, तब उसे कवल धारण कहा जाता है| [भाव प्रकाश सू. स्था. अ.22 श्लोक 11] 
कब करें गंडूष-  गंडूष धारण का सही समय प्रात देनिक कर्म से निपट कर नाश्ते आदि से पूर्व खाली पेट, और सोने से पूर्व है| पर आवश्यक होने पर किसी भी समय चिकित्सक के परामर्श से किया जा सकता है
गंडूष धारण अवधि अर्थात गंडूष कितनी देर तक करें:-  आयुर्वेद के अनुसार इसका समय व्यक्ति पर निर्भर होता हैइसका वर्णन कुछ इस प्रकार किया गया है-  प्रयुक्त किये जाने वाले द्रव घृततैलक्वाथ आदि तब तक मुहं में भर कर रखना चाहिए जबतक की मुहं के अन्दर कफ न भर जायेऔर नाक और आँख से पानी  न झरने लगे
कैसे करें गंडूष:- 
मुहं में समाये जितना भर लें और मुहं में घुमाया न जा सके वह मात्रा (व्यक्ति के मुख के अनुसार) लेकर जब तक नाक और आंख से पानी न आने लगे भरे रखें, फिर थूंक दे एसा 5 से सात बार करें| ,
 कैसे करें कवल धारण-
लगभग 15 ग्राम घृत, तेल, या ओषधि को मुहं में भरकर चारों और घुमाएँ , एक और से दूसरी और , आगे से पीछे, दांतों के बीच, एक माउथ वाश की तरह, इतना की कोई भी खाने के कण और बेक्टीरिया आदि चिपके नहीं रह पाएं| कुछ देर बाद जब इसे थूकेंगे तो पाएंगे की तैल कुछ पतला और दुधिया सा हो गया है, एसा लार (Saliva) मिल जाने से होता है, यदि एसा न हो तो अगली बार अधिक समय तक करें. नासा और अश्रु स्राव होने पर उसे थूंक देंएसा पांच से सात बार दोहराएँ|   5 से सात बार करने के बाद उष्ण जल से कुल्ले करें, और हमेशा की तरह ब्रश करेंआप पाएंगे की मुंह स्वाद अच्छा हो गया है|
रोगानुसार कुछ गंडूष प्रयोग:-
स्वस्थ व्यक्ति यदि प्रतिदिन सरसों तेल का गंडूष धारण करे तो कोई रोग नहीं होता|
सर्व मुख रोग -खदिरादी तेल के गंडूष या कवल से सभी मुख रोगों में लाभ होता है|
इरिमेदादी तेल, या वाणादी तेल का गंडूष या कवल मुख के रोग दूर करता है,  हिलते हुए दांत फिर से जमा देता है| भावप्रकाश अ. 22-श्लो.84/88/90 
विशेष -मुहं के केंसर की प्ररम्भिक अवस्था जब मुहं खुलना कम हो गया हो और मुहं में सफ़ेद सा निशान उभर रहा हो में इन तेलों के गंडूष से केंसर से बचने की सम्भावना बड जाती है|
दन्त और मुख रोग:- दन्त हर्ष (Tooth Sensitivity) या दांतों में पानी लगना या झनझनाहट होने, हिलने, आदि रोगों में कुचली हुई तिल को पानी में उबाल कर (क्वाथ) या त्रिफला क्वाथ[1], ‘इरिमेदादी तेल’, या खदिर घृतआदि  का गंडूष धारण|
मुहं में जलन छाले आदि हों, क्षार (Alkali), आदि से जल गया हो, तो गाय के घी, या ठंडे गो दुग्ध से गंडूष लाभदायक है| मुख में छाले होने पर चमेली पत्र या त्रिफला +मुन्नका+ पाठा (एलोवीरा) के क्वाथ से गंडूष या कवल धारण|
शहद या शहद मिले पानी से गंडूष करने से मुहं साफ़ होता है, मुख के अन्दर के घाव अच्छे होते हें| दाह और प्यास बार बार लगती हो तो शांत होती है|,
मुहं में फीकापन या सूखापन हो तो कांजी या छाछ का गंडूष (कवल) धारण करें|
गले मुख में कफ जमा हो तो चूना पानी[2] (लाइम वाटर) से गंडूष लाभकारी है, यह कफ को निकालकर खांसी, टोंसिल्स, आदि दूर करता है|
शीत दन्त दंतों में ठंडा पानी कष्ट दे तब क्षीरी वृक्ष (बड, पीपल आदि) छाल के क्वाथ से कवल धारण,
दन्त हर्ष (ठंडी हवा, खट्टे पदार्थ, का स्पर्श सहन न होना)- तिल और मुलेठी के कल्क से पकाए गो दूध से गंडूष|
दन्त-चाल (दांत हिलने पर)- दशमूल क्वाथ तेल मिलकर गंडूष|
दंत शूल -हिंग्वादी तेल से गंडूष, एरंडमूल+कंटकारी+वनभटा मूल+गोरखमुंडी के क्वाथ में तेल मिलाकर गंडूष|
इनके अतिरिक्त भी आचार्य वाग्भट्ट, चरक, सुश्रुत आदि ने गंडूष और कवल के कई योग बताएं है, ग्रन्थ देख कर चिकित्सक लाभ ले सकते हें|
आधुनिक इस काल में वैद्य अपने अनुभवों के अनुसार तेल,घृत, ओषधि क्वाथ, स्वरस, आदि का प्रयोग कर रहे है कुछ का अनुभव नारियल तेल, सन फ्लोवर तेल आदि वर्तमान उपलब्ध तेलों का भी है, जिनका वर्णन संहिताओं में नहीं मिलता, का भी प्रयोग कर रहे हें| 

वर्तमान में बाज़ार में कई तरह के माउथवाश भी उपलब्ध हें, ये सब कवल के ही प्रयोग हैं, पर इनमें अधिकतर शोधन हेतु ही है| वर्तमान समय अनुसार उपलब्ध ग्लिसरीन, आदि का प्रयोग भी दोष और रोग के अनुसार विचार कर किया जा सकता है|


[1] क्वाथ :- ओषधि को पानी आदि किसी द्रव के साथ ¼ (आदि) शेष रहने तक उबालकर बनाना|
[2]  लाइम वाटर - चूना 100 gm और पानी 2 lt में डाल कर रख दें ठंडा होने पर पानी निथार कर छान लें चूना न आने पाए|  

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समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें| इसका प्रकाशन जन हित में किया जा रहा है।

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