गंडूष या
कवल धारण करना सभी के लिए एक सस्ती, आसान, सर्व सुलभ और श्रेष्ट चिकित्सा है| और अधिकांश
मामलों में हानि रहित भी है|
डॉ मधु सूदन व्यास
गंडूष और
कवल धारण की प्रक्रिया के सामान्य परिचय से ही, कोई भी व्यक्ति इससे लाभ उठा सकता
है| वर्तमान में कई लेख देखे जा रहे हें जिनमें इसे "आयल पुलिंग Oil Pulling" कहकर इसका अवमूल्यन
कर दिया गया है| गंडूष या कवल धारण केवल तेल से ही नहीं होता वरन कई द्रव्यों
जिनमें घृत, ओषधि क्वाथ, स्वरस, यहाँ तक की पान का प्रयोग (कल्क) भी इनके अंर्तगत
आता है|
पंचकर्म के
अंतर्गत पूर्व कर्म में स्नेहन के अंतर्गत गंडूष का समावेश किया गया है| गंडूष का अर्थ कुल्ला करने जैसा ही है, कई आचार्यों
ने गंडूष, और कवल धारण में कुछ अंतर बताया है|
गंडूष और
कवल में अंतर यह है की गंडूष में मुहं को पूरा भर लिया जाता है, की उस द्रव को
मुहं में हिलाया न जा सके, जब द्रव को मुहं में हिलाया जा सकता हो, तब उसे कवल
धारण कहा जाता है| आचार्य शारंगधर ने तो
पान को मुहं में चवाते हुए घुमाने को भी ‘कवल’ कहा है| सामान्य भाषा में कवल का
पर्याय कोर या ग्रास (एक बार एक टुकड़ा खाना) भी है|
हम सभी
जानते हें, की प्रतिदिन प्रात: और भोजन या कुछ भी खाने के बाद कुल्ला (Rinsing or gargling) करने से मुहं की सफाई हो
जाती है और हमको अच्छा लगता है| यदि कभी कुल्ले न करें तो बड़ा ही ख़राब तो लगता ही
है, साथ ही दांतों, और मुख के
अन्दर छुपा, या जमा हुआ खाने के अंश सड कर दुर्गन्धित अमोनिया आदि गेस उत्पन्न
करते हें, इनमें बेक्टीरिया बड कर दांत, मुख के भाग, नासिका, से लेकर पेट तक और वहा
से बढकर सारे शरीर में फैल कर रोगों का कारण बन जाते हें| अतः समझा जा सकता है, की
निरोगी रहने के लिए गंडूष कितना लाभकारी होता है| इसी प्रकार यदि कोई रोग हो जाये
तो विभिन्न ओषधि द्रव आदि का गंडूष उन रोगों को हटाने में भी समर्थ सिद्ध होता है|
गंडूष
और कवल धारण के सामान्य लाभ:-
स्वस्थ्य
व्यक्तिओं में इससे, जबडे (lower jaw) और ठोड़ी (chin) में ताकत आती है, इससे भोजन को
अच्छी तरह चबाया जा सकता है और अच्छा पोषण मिलता है| वाक् क्षमता (बोलने की शक्ति), और आवाज की गुणवत्ता (quality of speech) में सुधार
होता है| चेहरे की मांसपेशियां मजबूत होती है इससे चेहरा सुन्दर बनता है| भोजन के
प्रति रूचि बडती है| स्वाद इंद्रियों सक्षम बनती है| होंठ के सूखने या अधिक प्यास लगने
की समस्या दूर होती है| मसूड़ों और दांतों को मजबूत बनता है, उनके रोगों को नष्ट
करता है|
कई
रोगों में गंडूष और कवल धारण बड़ा उपयोगी
और रोग नाशक है|
मन्या शूल
(ग्रीवा के ऊपर का दर्द), शिर: शूल (headache), कर्ण रोग
(ear diseases), नेत्र रोगों (Eye diseases), टोंसिल्स आदि कंठ रोग (Throat problems गले की समस्या),
लालास्राव (excessive salivation), पिपासा (प्यास Thirst), तन्द्रा (lassitude सुस्ती या ढीलापन),
अरुचि (Anorexia), पीनस (Chronic
sinusitis), और प्रतिश्याय (जुकाम Colds),
छाले या मुख पाक (mouth ulcers), आदि|
गंडूष
के चार प्रकार [आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार] :-
1. स्निग्ध
गंडूष Adipic
gargarism
– जो मुहं में चिकनाहट करे| एसे रोग जिनमें वात दोष प्रधान हो (जिनमें दर्द, शोथ
हो पर दाह या जलन न हो)| यह विशुद्ध या वात शामक ओषधि से निर्मित घी तेल आदि से
किया जाता है|
2. शमन
गंडूष Mitigatory
gargarisme-
जो दोषों को शांत कर दे| पित्तज दोष प्रधान रोगों में (दाह (जलन) सहित सूजन और दर्द) | यह पित्त शामक (तिक्त
क्षय, और मधुर रस प्रधान) ओषधि क्वाथों से किया जाता है|
3. शोधन
गंडूष Purificatory
gargarisme
जो रोगों को नष्ट करे| कफ दोष प्रधान में नीम आदि तिक्त (कडुवा) और कटु (चरपरा),
अम्ल (खट्टा), लवण (खारा) आदि रस युक्त क्वाथ[1]
(काडा) से कुल्ले करना| वर्तमान में इसके लिए लिस्टेरिन आदि कई माउथ वाश बाज़ार में
है|
4. रोपण
गंडूष Planting
gargarism
जो ऊतक (tissue) का निर्माण कर सामान्य स्थिति को पुन: उत्पन्न करे| मुहं के अन्दर के
सभी भागों (तालू, मसूड़े, जीभ,अदि) के व्रण (घाव) आदि भरने का कार्य करते हें|
सभी प्रकार के गंडूशों में घी, तेल, दूध, शहद,
सिरका, मद्द्य (alcohol), मांस-रस, फलों और ओषधियों आदि के स्वरस (Juice),
या उनके क्वाथ
कांजी आदि का प्रयोग किया जाता है| कईआचार्यों ने गाय आदि पशुओं के मूत्र से भी
गंडूष करने के बारे में लिखा है|
आधुनिक
इस काल में वैद्य अपने अनुभवों के अनुसार तेल,घृत, ओषधि क्वाथ, स्वरस, आदि का
प्रयोग कर रहे है कुछ का अनुभव नारियल तेल, सन फ्लोवर तेल आदि वर्तमान उपलब्ध
तेलों का भी है, जिनका वर्णन संहिताओं में नहीं मिलता, का भी प्रयोग कर रहे
हें|
वर्तमान
में बाज़ार में कई तरह के माउथवाश भी उपलब्ध हें, पर अधिकतर शोधन हेतु ही है|
वर्तमान समय अनुसार उपलब्ध ग्लिसरीन, आदि का प्रयोग भी दोष और रोग के अनुसार विचार
कर किया जा सकता है|
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समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें| इसका प्रकाशन जन हित में किया जा रहा है।
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