ऑटोइम्यून रोग (निज रोग) उनके कारण, निवारण और
चिकित्सा.
According
to Ayurveda “Nij Roga’s” are- Autoimmune
disease.
आयुर्वेद के अनुसार “निज रोग”
ही होते हें - स्व-प्रतिरक्षित (ऑटोइम्यून) रोग.
वर्तमान में हम सबको भोजन, पानी,
हवा, आदि सब कुछ मिलावट से भरपुर, विषाक्त लेने के लिए मजबूर होना होता है, इन
खाने-पीने-श्वास आदि के साथ मिली अशुद्धियों को मेटाबोलिक प्रक्रिया से दूर करने
के लिए, हमारी प्रतिरोधक क्षमता संघर्ष करती है, यह सतत प्रक्रिया, शरीर के ऊतको को कमजोर बनाती हैं,
इससे रोग प्रतिरोध क्षमता कम होती चली जाती है, ऐसे में यह प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर के कुछ अंगों, या
उन्हें बनाने वाले पदार्थों को ही शरीर का दुश्मन समझ उन पर हमला कर देती है,
इस आपसी युद्ध से कमजोर शरीर में कई रोग उत्पन्न होने लगते हें|
ये रोग ही ऑटोइम्यून रोग होते हें, इन्ही के
समान परिभाषा वाले रोगों को ही आयुर्वेद ने निज रोग कहा है|
कई बार जोड़ों में दर्द, थकान,
अनिद्रा या ज्वर होने पर वह ठीक नहीं होता और न ही उसका कारण पता
चलता विशेषकर 65 वर्ष से अधिक आयु की 60% महिला और 40% पुरुषों में तो यह
स्वप्रतिरक्षित रोग हो सकता है|
कई वर्ष पूर्व तक अधिकांश लोग कुछ रोगों का कारण भूत,
प्रेत आदि को माना करते थे, फिर विज्ञान ने यह
बताया की रोगों का कारण विषाणु, जीवाणु, कृमि आदि है| यह बात आज अधिकांश लोग मानते हें,
पर वास्तव में एसा नहीं है| दूसरे तरह का यह
रोग हमारे शरीर के द्वारा ही पैदा किया गया स्व-प्रतिरक्षित (ऑटोइम्यून) रोग हो
सकता है|
आयुर्वेद के आचार्यों ने दो तरह के रोग बताये है,
एक निज दूसरा आगन्तुज| प्रारम्भ में आधुनिक
चिकित्सा विज्ञानियों ने निज रोग को झुटला दिया था, बाद में
धीरे धीरे आयुर्वेद के निज रोग सिधांत को स्वीकार कर लिया, और
स्व प्रतिरक्षित रोग कहा गया |
अधिकांश लोग आज यह जानते हें की प्रत्येक व्यक्ति या प्राणी में
प्रतिरक्षा प्रणाली होती है, जो बाहरी या
आगन्तुज जीवाणुओं के विरुद्ध लड़कर उन्हें पराजित कर हमारा रोग मुक्त करती है|
यह ऑटोइम्यून रोग अधिकतर 65 साल की उम्र के बाद और 60% महिलाओं, 40% पुरुषों में
ही होता है, क्योंकि इस आयु तक पहुँचते पहुँचते सभी अंग
(टिशूज) कमजोर, पढ़ जाते हें, परन्तु
कभी कभी यह युवाओं में भी देखा जाता है, विशेषकर उनमें जो
लगातार छोटे मोटे दर्द रोग आदि होने पर दवाएं लेने के अभ्यस्त होते हें को होता है,
क्योंकि वे शरीर की प्रतिरोधक शक्ति को रोग से लड़ने का मोका ही नहीं
देते|
स्व-प्रतिरक्षित (ऑटोइम्यून) रोग क्या हैं?
स्व-प्रतिरक्षित (ऑटोइम्यून) रोग प्रमुखत: जोड़ों में दर्द, थकान, अनिद्रा, होने से जाने जा सकते हें, पर निम्न एक या अधिक लक्षण भी मिल सकते हें|
जोड़ों में दर्द Painful joints
नींद न आना (अनिद्रा Insomnia),
हमेशा थका हुआ अनुभव करना, Fatigued
experience
मांसपेशियों में दर्द, Muscle pain
मांस पेशी की कमजोरी, muscular weakness
वजन में कमी, Weight loss
ह्रदय की धड़कन बढना या अनियंत्रित होना, palpitation
त्वचा का अतिसंवेदनशील होना,
त्वचा पर धब्बे पड़ना,
मन न लगना या दिमाग ठीक से काम न करना और ध्यान केंद्रित करने में
समस्या,
बालों का झड़ना,
पेट में दर्द होना,
मुंह में छाले होना,
हाथ और पैरों में झुनझुनी या सुन्न हो जाना,
रक्त के थक्के जमना,
बिना संक्रमण सूजन,
बिना कारण बुखार आते रहना,
- - आदि आदि जैसे लक्षण होते हें|
सामान्यत: निम्न रोगों को स्वरक्षित रोग माना गया है-
आयुर्वेद के वात रोग संधिवात, आमवात
या रूमेटाइड अर्थराइटिस, टाइप1 डायबिटीज, थायराइड समस्या, ल्यूपस, सोराइसिस, आदि
रोग जो सार्व देहिक प्रभाव डालते हें, भी इसी श्रेणी के हें|
आमवात या गठिया (rheumatoid
arthritis), श्वित्र या सफ़ेद दाग (vitiligo), त्वग्काठिन्य (scleroderma), वीटामीन B 12 की कमी से
होने वाली खून की कमी(pernicious
anemia),मेदा, गेहूं अदि
में पाया जाने वाले ग्लुटीन के कारण छोटी आंत की
विकृति, छालरोग,(psoriasis), आंतों में सूजन, (inflammatory bowel) थाईराइड, सिजोग्रिन
सिंड्रोम से सूखी आँख (dry eye), वृक्क और फेफड़ों के रोग, मधुमेह (type 1 diabetes), मोटापा आदि|
पेट का रखे ध्यान-मल क्रिया (शोच होना) ठीक तो सब कुछ ठीक!
आयुर्वेद सदियों से यह बताता रहा है, और चिकित्सा में हर स्तर पर मल-क्रिया पर
विशेष ध्यान देता रहा है| अब आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के
अनुसार भी माना जाने लगा है की व्यक्ति के शरीर का 80 % से अधिक प्रतिरक्षा प्रणाली संचालन पेट से ही संबद्ध होती है, परन्तु अभी भी वे मल स्टूल की जाँच, को अधिक महत्व
नहीं देते|
यदि आप भी इस रोग से बचना चाहते हें तो सबसे पहिले तो अपने पेट पर ध्यान
दें| ऑटोइम्यून रोग होने पर पेट में संक्रमण (आगन्तुज
रोग) कृमि Worm, पेचिश Dysentery, आदि भी होने लगता है, इसलिए मल (स्टूल) की जांच
करायें और रोगानुसार पहिले चिकित्सा और आहार में बदलाव करें|
केसे बढ़ाएं स्व-प्रतिरक्षित क्षमता और दूर करें कष्ट?
आप चिकित्सक से परामर्श के साथ, नियमित
दिनचर्या और व्यायाम आदि को प्रमुखता दें|
आयुर्वेदिक चिकित्सक इन्हीं निज या इन स्व-प्रतिरक्षित रोगों की
चिकित्सा के लिए रोगी के आहार-विहार (भोजन- परहेज, आचार-विचार, दिनचर्या), पर
विशेष ध्यान केन्द्रित कर प्राथमिक रूप से उदर शुद्धि (सम्यक मल क्रिया हेतु)
प्रयत्न/ चिकित्सा करते हें| जबकि अन्य पेथी के चिकित्सक
लक्षणों के अनुसार तात्कालिक आराम देने का प्रयत्न मात्र करते हें, और को शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाने की प्रतीक्षा करते हें|
खानपान बदलें - ऐसे आहार का सेवन करें जो आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हों।
इसके लिए सबसे साबुत अनाज, खाने में ताजे फल और सब्जियों को और अधिक सेवन करें|
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने वाली आयुर्वेदिक जड़ी बूटी जेसे गिलोय,
असगंध, भूमि आमला, त्रिफला,
आदि आदि एकल या ओषधि योग के रूप में किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक के
परामर्श से नियमित सेवन करें|
स्व-प्रतिरक्षित रोग जानने के लिए रक्त परीक्षण
1- C-reactive protein (CRP).
2- ESR (erythrocyte sedimentation rate) – बिना
किसी संक्रमण सूजन क्यों हुई यह जानने| .
3- ANF (anti nuclear factor). कराया जाता है|
End of "The
causes of autoimmune disease and prevention & therapy,
ऑटोइम्यून रोग (निज रोग) उनके कारण, निवारण और
चिकित्सा".
समस्त चिकित्सकीय सलाह,
रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान (शिक्षण) उद्देश्य से है|
प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें| इसका प्रकाशन जन हित में किया जा रहा है।