Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

Anal Burning or Pain - Warnings of future Piles or Fistula etc :-

 गुदा में जलन या दर्द :- भविष्य में हो सकने वाले ववासीर,  भगन्दर आदि की चेतावनी!! 
अक्सर किसी को भी, किसी भी मौसम में किसी भी समय मलाशय (Rectum, गुदा,) में जलन, दर्द, होने लगता है| शायद ही कोई हो जिसे इसका अनुभव न हुआ हो | अकसर सभी प्रारम्भ में इस पर ध्यान नहीं देते, क्यों की  उन्हें ज्ञात हो सकता है , की यह एक दिन पूर्व तीखा आदि  खाने पीने (विशेष कर अधिक मात्रा में) से हुआ है, और ठीक भी हो जाएगा, और ऐसा होता भी है |  
    पर क्या समस्या पूरी तरह हमेशा के लिए ठीक हो जाएगी?
    नहीं !  
 गुदा में जलन या दर्द :-
भविष्य में हो सकने वाले ववासीर,
 भगन्दर आदि की चेतावनी!! 
   खतरे की घंटी है यह?:- वास्तव में यह एक पूर्व चेतावनी या खतरे का अलार्म होता है जो हमारे मष्तिष्क द्वारा दिया जाता|  जब बार- बार चेतावनी (जलन दर्द आदि) होने  लगती है, और इस पर विशेष ध्यान नहीं देते तब शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली इसे सामान्य मान कर स्वीकार करने लगती है, इससे होने वाले दर्द जलन आदि की सुचना देना बंद कार देती है, हम समझने लगते हैं की अब कोई तकलीफ नही है | 
यही गुदा की रोगों का प्रारम्भ होता है, और धीरे धीरे (कई वर्ष में) , कब्ज (शौच साफ़ न आना) , विवन्ध ( मल का न आना), अतीसार, प्रवाहिका, गुदचिर, अर्श (ववासीर) भगन्दर आदि, आदि , आदि गुदा से सम्बन्धी अनेक रोग होने लगते हैं |  
   यह सब इतने धीरे धीरे होता है कि किसी को भी इसका कारण पता ही नहीं होता |  
   आवश्यकता इस बात की है, की जब पहली बार यह कष्ट हो तो दुबारा न हो यह प्रयत्न करना चाहिए | समस्या यदि छोटे नासमझ बच्चों को है तो और भी विशेष जिम्मेदारी बढ़ जाती है, अन्यथा उनका सारा स्वस्थ्य जीवन प्रभावित हो सकता है |
      क्या करें? 
      सिर्फ तीन बातों का ध्यान रखें- 
  1. खाने की समीक्षा करें - तकलीफ के पाहिले, कितना (मात्रा) , कोनसा (तीखा, अम्लीय, आदि) , और कैसे ( जैसे खाली पेट, कुछ खाने पीने के बाद आदि) , समय ( वक्त-बेवक्त), लिया गया था | 
  2. समीक्षा के बाद खाने में खाये जाने वाले खाने पर नजर रखें, हानि पहुँचाने वाला खाद्य, बिलकुल भी, या सीमा से अधिक न खाया नहीं खाया जाये,  या खिलाया जाए| 
  3. समीक्षा करें की खाने के अतिरिक्त और कौन सी गतिविधि, जैसे कोई दवा खाना, कोई ऐसा काम जैसे भूखे रहना, धुप में प्यासे रहना, अधिक आराम बैठे या सोते रहना, व्यायाम का आभाव, निष्क्रियता, आदि भी इसके लिए कुछ कुछ इस समस्या के लिए जिम्मेदार हो सकतीं हैं की विवेचना|   
इसके बाद भी तकलीफ बार बार होने पर चिकित्सक से लगातार परामर्श कर कारण तलाशें और दूर करें
इस विषय में हमारे अन्य लेख पढ़ें:-   Life and Season Concept ऋतू चर्या
                                                       Disease of  Digestiv System  पाचन संस्थान के रोग
    चिकित्सा ? 
     अक्सर जलन दर्द आदि सामान्य कष्ट, कारण हटते ही स्वयं ठीक हो जाती है, पर कारण हटने पर भी ठीक न हो तो निम्न उपाय करें:- 
  • ओषधि लेपन - गुदा में कोई स्निग्ध (चिकना) घी, ओषधितैल, या बोरो प्लस आदि मलहम आदि लगाएं, आयुर्वेदीय ओषधि तैल जात्यादि तैल, इरिमेदादि तैल अधिक श्रेष्ठ वर्ण रोपक (घाव जलन ठीक करने वाला) होता है  | 
  • टब में बैठें - यदि गुदा में अधिक खिंचाव हो रहा हो एक टब में गुनगुना पानी भर कर उसमें फिटकरी चूर्ण मिला कर कुछ देर बैठें, बाद में तेल घी आदि लगाएं| 
  • जुलाब लें :- कब्ज (हो या न हो) दूर करने अपनी, रोगी या बच्चे को (क्षमता के अनुसार- हल्का या तेज) विरेचन (जुलाब, Laxity, Purgative,) लें/ दें| इसके लिए कोई चूर्ण, गोली, एरंड तैल, आदि मिलतीं है, आधुनिक पैराफिन लिक्विड देतें है पर इसकी तुलना में एरंड तैल अधिक अच्छा होता है | आयुर्वेद के अनुसार जलन दर्द पित्तज (पित्त की कारण) समस्या होती है और पित्त शांत करने विरेचन दिया जाता है| 
  • एनिमा (बस्ती) दें - ग्लिसरीन, सोप वाटर, गुनगुना पानी आदि का एनिमा दें|  बाज़ार में प्लास्टिक पाउच में लगाने वाली नली सहित, तैयार ग्लिसरीन एनीमा मिलता है, उस पर लिखी विधि अनुसार लगाएं |
  • ग्लिसरीन की बत्ती (ग्लिसरीन सपोसिटरी, glycerin suppository)  बच्चों की छोटी बड़ों की बड़ी दोनों मिलती है, अंगुली चिकनी कर आसानी से गुदा में चलीं जातीं हैं, का प्रयोग कर शौच कराएं| बत्ती गुदा में डाल कर लेट कर उसके अंदर गलने की प्रतीक्षा करें वेग न रोक पाने पर मल त्याग करें | 
  •  गुदा की समस्या अधिक होने पर आयुर्वेदीय चिकित्सा में ओषधि तैल/ क़्वाथ या दोनों टब में बैठा कर रोग ठीक किया जाता है|  
  • बस्ती चिकित्सा:- पूर्ण चिकित्सा के लिए आयुर्वेद में विभिन्न अस्थापन और अनुवासन आदि बस्तियां दी जातीं है ((देखें लेख:-   )       
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समस्त चिकित्सकीय सलाह, रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान (शिक्षण) उद्देश्य से है| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें| इसका प्रकाशन जन हित में आयुर्वेदिक चिकित्सा के ज्ञान, सामर्थ्य, हेतु किया जा रहा है। चिकित्सा हेतु नजदीकी प्राधिक्रत आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लेँ। चिकित्सक प्रशिक्षण हेतु सम्पर्क करै।

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जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

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