Rescue from incurable disease

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लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

डाईविटीज ओर ह्रदय रोग का बीज - कब्ज में?

कब्ज की इस छोटी सी दिखने वाली समस्या
गंभीर स्थिती भी पेदा कर सकती हे। 
डाईविटीज ओर ह्रदय  रोग का बीज - कब्ज में?
कोई नहीं चाहेगा की उसको भविष्य में कभी भी डाईविटीज ओर ह्रदय रोग जेसी बीमारियाँ हो जाए। इन रोगों का बीज कब्ज में छुपा हुआ होता है, ओर हम सब अनजाने ही इसको रोप देते हें। यह महाभयानक रोग का बीज हे कब्ज?  जो अनियमित खानपान जिसे आयुर्वेद में मिथ्याहार-विहार कहा जाता हे, से ही उत्पन्न होता है।  
  इस कब्ज का होना आजकल सामान्य बात हो गई हे। इसके कारण  पेट या उदर के रोग: जेसे पेट में ऐंठन और दर्द होना अक्सर देखा जाता हे। अनियमित खान-पान और लाइफस्‍टाइल कब्‍ज का प्रमुख कारण है। कब्ज की अगली पायदान एसिडिटी या अम्लपित्त या पेट में जलन, खट्टी डकार, बैचेनी, जेसे लक्षण मिलना आज सामान्यत:मिलने लगी हे। ये ही आगे चलकर पेट में छाले या अल्सर पेदा करते हें। 
  यह कब्ज यहीं एसिडिटी पर नहीं रुक जाती धीरे धीरे अर्श या ववासीर [गुदा में गांठ] शरीर का अनियंत्रित  रूप से विकास या मोटापा, ब्लडप्रेशर, डाईविटीज, फिर आगे ह्रदय रोग आदि भयानक रोगों को जन्म देती है। 
  कब्ज की इस छोटी सी दिखने वाली समस्या कितना गंभीर रोग पेदा कर देती हे यह यदि समय रहते नहीं सोचा गया तो-

  कब्ज हो जाए तो वह कब्ज की चिकित्सा से ठीक भी हो जाती हे, पर यह कब्ज  ठीक होने के बाद फिर वही मिथ्याहार ओर खान पान फिर से कब्ज जब सिलसिला चलता ही रहेगा तो फिर कौन बचा सकता हे महा भयानक रोगों से। 
हम सब इस बात को समझे न केवल चिकित्सा कर कब्ज को पास न आने दें बल्कि खानपान को सुधार कर पुनः कब्ज न होने दें। इसके लिए आवश्यक हे की इसके बारे में अधिक जाने।

अनियमित दिनचर्या का अर्थ इन शब्दो में ही छुपा है। प्रात: उठने के समय से लेकर सोने तक जिसमें देनिक आवश्यक ओर परिस्थिति वश उत्पन्न  गतिविधियां, और खान-पान संबन्धित स्वाद सुख पाने के कारण जैसे हम भोजन से संतुष्टि का नाम देकर मिर्च-मसाले वाले खाद्य का आनंद किसी भी बहाने से रोज लेते रहते हें,कहीं भी और कुछ भी खा लेना खाने के बाद बैठे रहना, डिनर के बाद तुरंत सो जाना, खूब कस कर खाना, या किसी शादी, पार्टी आदि में ऐसे खाना जेसे " माले मुफ्त तो दिले बेरहम" आदि ऐसी आदतें हैं,  इसी से कब्‍ज और पेट गैस की समस्‍या वर्तमान में आम बीमारी की तरह हो गई है। कब्‍ज रोगियों में पेट फूलने की शिकायत भी देखने को मिलती है। पेट में गैस बनने की बीमारी ज्‍यादातर बुजुर्गों में देखी जाती है लेकिन यह किसी को भी और किसी भी उम्र में हो सकती है।
युवावस्था में यह बातें बड़ी साधारण लगतीं हें। फिर हमारे देश में तो अतिथि सत्कार द्वारा बलात्कार पेट पर ही होता हे, खूब मनुहार कर करके खिलाये जाने की परंपरा बनी हुई हे। बचपन से हमारे वुजुर्ग बच्चो के खूब खाने पीने पर विशेष ज़ोर देते रहे हें। इससे इस खूब खिलाने पिलाने की आदत बन गई हे। इन खिलाने खाने की आदतों पर पुनर्विचार किया जाना जरूरी हे। अधिक मनुहार कर खिलाना दुश्मनी निकालने जेसा हे। आपके पूर्वजों ने या उन महमानों ने आपको अधिक खिलाया था, तो क्या आप अब बदला ले रहे हें।  
  पिछले तीन चार दशकों में मोटर साईकल आदि वाहनो को खरीदने की  शक्ति बड़ जाने से सभी का पैदल चलना लगभग समाप्त हो गया है, शिक्षा में प्रतिस्पर्धा के चलते अत्यधिक पड़ने के व्यसन ने शारीरिक गतिविधियां बंद कर दीं हें। खेल कूद दोडने भागने के लिए हमारे बच्चो के लिए कंक्रीट के शहरों में मैदान ही नहीं बचे है। सारे बाग बगीचे व्यावसायिक केन्द्रों में बदल गए हें। इस परिस्थिति में बढ़ता बचपन युवावस्था में भी इन आराम देह आदतों का आदि हो चुका होता हे। न्यूनाधिक रूप से बचपन की ये समस्याएँ युवावस्था ओर फिर प्रोढ़ावस्था में आजीविका के चक्र में फंसा हुआ व्यक्ति असंयंमित जीवन ओर आरामदेह जीवन जीता है। इन परिस्थितियों में अधिक खाने पचने की क्षमता कहाँ से आएगी। यही अधिक खाया पिया न पच पाने के कारण कब्ज पैदा कर देगा, कब्ज के लिए इलाज करेंगे ठीक तो होगा,क्योकि रोग लाइलाज नहीं।  फिर दोवारा भी परिस्थितियाँ वही होने से पुन: कब्ज होगी।  इस सिलसिले का अंत महाभयानक रोगों के लग जाने पर भी समाप्त होगा यह कहना कठिन है। 
कब्ज की चिकित्सा तो करें पर पुनः कब्ज न हो इसके लिए दैनिक जीवन में आहार अर्थात खानपान में सुधार से लेकर विहार अर्थात जितना खा रहे हें उसको पचाने के लिए शारीरिक श्रम, व्यायाम आदि करते रहना पड़ेगा। वर्तमान जीवन चर्या के अनुसार मितभोजी बनकर ही समस्या से दूर रह पाएंगे। 
एक कहावत है,
 जितना भोजन कीजिये, दुगना पानी पीय, तिगुना श्रम, चोगुनी हांसी वर्ष सवा सो जीव। 
 इसमें पहली तीन बाते आपको करनी हें, चोथी हांसी [ हंसी] अर्थात जीवन का आनन्द स्वयं ही मिल जाएगा। 

  शारीरिक चिकित्सा के विचार से कब्‍ज से बचने के लिए निम्न  घरेलू नुस्खों का प्रयोग कर सकते हें। पर ध्यान रहे की ये सब अस्थाई हें। 
कब्ज या "constipation" का उपचार 
  1. सुबह उठने के बाद नींबू के रस को काला नमक मिलाकर पानी के साथ सेवन कीजिए। इससे पेट साफ होगा। 
  2. 20 ग्राम त्रिफला  रात को एक लिटर पानी में भिगोकर रख दीजिए। सुबह उठने के बाद त्रिफला  को छानकर उस पानी को पी लीजिए। इससे कुछ ही दिनों में कब्‍ज की शिकायत दूर हो जाएगी। 
  3. कब्‍ज के लिए शहद बहुत फायदेमंद है। रात को सोने से पहले एक चम्‍मच शहद को एक गिलास पानी के साथ मिलाकर नियमित रूप से पीने से कब्‍ज दूर हो जाता है। 
  4. सुबह उठने के बाद बिना कुछ खाए, 4-5 दाने काजू के और 4-5 दाने मुनक्‍का के साथ खाइए, इससे कब्‍ज की शिकायत समाप्‍त होगी। 
  5. हर रोज रात में  हरड के बारीक चूर्ण को कुनकुने पानी के साथ पीजिए। कब्‍ज दूर होगा और पेट में गैस बनना बंद हो जाएगा। 
  6. रात को सोते वक्‍त अरंडी के तेल को हल्‍के गरम दूध में मिलाकर पीजिए। इससे पेट साफ होगा। 
  7. इसबगोल की भूसी कब्‍ज के लिए रामबाण दवा है। दूध या पानी के साथ रात में सोते वक्‍तइसबगोल की भूसी लेने से कब्‍ज समाप्‍त होता है। 
  8. अमरूद और पपीता कब्‍ज के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं। अमरूद और पपीता को किसी भी समय खाया जा सकता है। 
  9. किशमिश को पानी में कुछ देर तक डालकर गलाइए, इसके बाद किशमिश को पानी से निकालकर खा लीजिए। इससे कब्‍ज की शिकायत दूर होती है। 
  10. पालक का रस पीने से कब्‍ज की शिकायत दूर होती है, खाने में भी पालक की सब्‍जी का प्रयोग करना चाहिए। 
  11. अंजीर के फल को रात भर पानी में डालकर गलाइए, इसके बाद सुबह उठकर इस फल को खाने से कब्‍ज की शिकायत समाप्‍त होती है। 
  12. मुनक्‍का में कब्‍ज नष्‍ट करने के तत्‍व मौजूद होते हैं। 6-7 मुनक्‍का रोज रात को सोने से पहले खाने से कब्‍ज समाप्‍त होती है। =============================================================== 
कब्ज या "constipation" का उपचार –ओर अधिक जानकारी । 

अविपत्तिकर चूर्ण: स्वयं बनायें --जलन पेट दर्द से छुटकारा पायें ।
समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें|

1 टिप्पणी:

शिव ने कहा…

bahut badhiya

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निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

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