Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

Diabetic foot – Which can be disabled. (डायबिटिक फूट - एक अपंग बना सकने वाला रोग).

"Diabetic foot" Yes the disease of diabetic patient, can cripple you, if you are not conscious.
यदि आप मधुमेह के रोगी हैं, तो सावधान! कहीं आपको, अपना पैर कटवाना न पड जाये| 
चोरी चोरी शरीर में प्रवेश करने वाला रोग मधुमेह या डायबिटीज, वर्तमान की बड़ी समस्या है, पर उससे भी बड़ी समस्या उसके डायबिटीज हो जाने के बाद हो सकती है| मधुमेह होने के बाद भी उसे अनदेखा करना, रोग के प्रति लापरवाही भरा रुख अपनाना, उस मधुमेह के रोगी को कितनी मुश्किलों में पहुंचा सकता है, यह भुक्त भोगी ही जानता है, और अधिकतर मामलों में यह स्तिथी में गंभीर परिणाम उठाना मज़बूरी होती है|
मधुमेह से हो सकने वाले आँखों के अंधत्व (Diabetic retinopathy) के अतिरिक्त, मधुमेह के रोगी को स्वयं की अनदेखी से एक और गंभीर परिणाम जो हो सकता है, वह हें “डायबिटिक फुट”|
अभी आपके पेर सामान्य है तो शुभकामनाएं, पर हमेशा सामान्य रहें, इसके लिए आपका इसके बारे में आज जानना जरुरी है| लेख में रोग विषयक जानकारी के साथ कुछ सामान्य सावधानिया बताई हैं, जिन्हें अमल कर आप इस रोग से हमेशा बचे रह सकते हें|
यह “डायबिटिक फुट” है क्या?

“डायबिटिक फुट” रोग होने पर पैरों में दर्द, जलन या झुनझुनी, गर्मी और सर्दी पहचानने की क्षमता में कमी, घावों, अल्सर, छाले, कॉर्न्स में संक्रमण, नाखून अंगुली की त्वचा के जुड़ने के स्थान पर सूजन-दर्द- और संक्रमण होना, पेरों के रंग में परिवर्तन, अंगुली के बाल झड़ने की शुरुवात, जैसे लक्षण थोड़े भी दिखने लगे हें तो समझलें डायबिटीज फुट रोग ने दस्तक दे दी है, और ये सब लक्षण पूरी तरह दिखने लगे हें, तो आप इससे प्रभावित हो चुके हें|

स्थिति जब तक सामान्य है, तब तक अधिक नियन्त्रण में हें, पर अब लापरवाही हुई तो पैर में हुआ घाव या अल्सर बढकर अस्थि तक पहुंचेगा, विकृत होकर सडन या गेंग्ररिन  (Gangrene) होने पर पैर काटने[1] की नोबत भी आ सकती है| एसी स्तिथि होने पर कोई भी आधुनिकतम एंटी बायोटिक भी काम नहीं करती| 
मधुमेह के रोगी के खून में रक्त शर्करा (Blood sugar) की समान्य से अधिक मात्रा जब अधिक समय तक बनी रहती है, तो उस व्यक्ति के पैरों के नाखूनों में परिवर्तन शुरू होने लगता है, परों में दर्द और झुनझुनी कभी कभी होने लगती है जो बड़ती जाती है, धीरे-धीरे परों में होने वाले कष्ट ठण्ड या गर्मी का पता चलना कम होते होते बदं होने लगता है, इसी कारण छोटी मोटी चोट, खरोंच, और किसी चर्म रोग का पता नहीं चलता, त्वचा गलकर, मरकर निकलने लगती है, वहां घाव होने लगता है नई त्वचा का बनना बंद या कम होने लगता है, इलाज करते पट्टी बांधने के बाद भी यह घाव या व्रण ठीक नहीं होकर हड्डी तक पहुँच जाता है, और कष्ट दर्द पैदा करता है| 
रक्त शर्करा भी घाव के चारों और एकत्र रहकर जीवाणुओं को पोषण देती है, घाव उन्हें आश्रय देता है, इससे यह संक्रमण स्थाई होने लगता है| मृत त्वचा के कोषों वहां अनावश्यक पड़े रहते हें, जिनमें विषाणु अपना निवास बनाते हें, इससे सडन की शुरुवात होते हें, जो आगे बढकर जीवित कोशिकाओं को भी अपना शिकार बनाती है| विषाणु होने से किसी भी दवा का प्रभाव से उन्हें नष्ट नहीं किया जा सकता इस कारण उस भाग को कुछ अच्छे मांस, अस्थि सहित स्थान से काट कर शरीर से अलग कर देना ही एक मात्र रास्ता अंत में रह जाता है|
कोई नहीं चाहेगा की वह अपना पैर गवां बेठे इसलिए आवश्यक है, की मधुमेह के प्रति लापरवाही नहीं दिखाई जाये, रक्त शर्करा हमेशा सामान्य रखी जाये, साथ ही अपने पैरों की भी नियमित देख रेख भी की जाये|
यदि आपको मधुमेह है तो केसे करें अपने पैरों की सुरक्षा और देखरेख?-
मधुमेह के प्रत्येक रोगी को आवश्यक रूप से अपने पैरों की निम्न अनुसार देखभाल करनी ही चाहिए|
रोज करें सफाई
प्रतिदिन पैरों को गुनगुने पानी से या अच्छे किस्म के मुलायम साबुन (Soft Soap), से धोना चाहिए, कठोर साबुन का असर त्वचा के लिए हानिकारक होगा|
 रोज एक बार नहाते समय अच्छी तरह से पैरों की सफाई करने के साथ दिन में दो तीन बार पानी से धोते रहना और टाबेल पोंछते रहना चाहिए|
सफाई के बाद जरुरी है रोज तेल मालिश
वर्तमान में मिलने वाले लगभग सभी साबुन त्वचा में रुक्षता (Rustiness खुश्की) उत्पन्न करते हें, इससे त्वचा में रक्त प्रवाह कम होता है, और नए कोष ठीक तरह नहीं बनते, इससे क्षरण भी बढता ही जाता है| अत: केवल अच्छी तरह धोना ही पर्याप्त नहीं, बाद में आवश्यक रूप से स्नेहन अर्थात तैल मालिश भी करना चाहिए, ताकि स्थानीय त्वचा का रक्त संचार बड़े और पोषण मिले| आधुनिक क्रीम वेसलिन केवल कुछ समय के लिए केवल नमी ही देते हें पोषण नहीं| इस हेतु तिल तैल (Sesame oil), या गो घृत सर्व श्रेष्ट है|
स्नेहन करता है पैरों की सुरक्षा -  जब भी पैरों में रुक्षता (सूखापन Dryness) का अनुभव हो चिकनाहट तैल, घृत, ग्लिसरीन, क्रीम आदि लगा कर स्नेहन करते रहना चाहिए| रुक्षता या खुश्की वात वृद्धि का कारण होती है वात यदि बड़ने लगे तो यह रुक्षता शरीर के अन्य भागों में फेलने लगती है, इसी वात के कारण अन्य कफ और पित्त जो दर्द, सूजन, जलन, आदि का कारण होते हें वे शरीर के अन्य भागों में भी अपने लक्षण पैदा करते हें|
रोज सोने से पहिले पैरों को जरुर धो लें और तैल लगायें –
 एक बार सोने से पूर्व भी पैरों को साफ पानी से धोकर थोडा तेल, घृत, ग्लिसरीन या बोरोप्लस जैसी क्रीम लगाकर ही सोना चाहिये, इससे पैर विवाई (क्रेक्स) रहित और अच्छे रहते हें, और नींद भी अच्छी आती है|
यदि क्रेक्स हों तो पेडीक्योर (टब में गुनगुना पानी भर पैर रखना) करें, बाद में तैल मालिश अवश्य करें|
प्रतिदिन परों को जाँच करें|
बिना किसी लापरवाही के प्रतिदिन पैरों का निरिक्षण करना चाहिए| यदि आपको अपने नाख़ून सहित पेरों के किसी भी भाग में कोई असामान्य परिवर्तन दिखे, जैसे घाव, काटना छिलना, खरोंच, चमड़ी निकलना, लालिमा, आदि तो तुरंत चिकित्सक से परामर्श कर समस्या को दूर करने का प्रयास करें| इस प्रकार की छोटी समस्या तो तैल मालिश से भी ठीक हो जाती है|
कभी भी एक आसन में न रहें-
मधुमेह के रोगियों को अधिक समय तक एक जैसी स्थिति में, न तो बेठना चाहिए, न खड़े रहना चाहिए, और न ही लगातार लेटना या सोना (अनावश्यक) चाहिए| एसा करने से रक्त संचार प्रभावित होने से परों में पोषण सक्रियता में कमी आती है, यह धीरे धीरे सुन्नपन झनझनाहट आदि होकर पैरों को हानि पहुँचती  है| 
थोड़ी थोड़ी देर में परों को हिलाते रहें, जोड़ों को मोड़कर सीधा करते रहे, बीच बीच में घूमना चलना या विश्राम करते ही रहना चाहिए| यदि पैर सुन्न हो, झुनझुनी होती हो जिसे सामान्य भाषा में सोना कहते हें, हो तो मालिश कर रक्त संचार ठीक करें, प्रतिदिन पैरों की मालिश करते रहने की आदत बनाये|
झुनझुनी रकत वाहिका , तंत्रिका के दावने से होती है, जो हिलाने मसलने से ठीक हो जाती है पर मधु मेही को बार बार होने लगे तो खतरे की घंटी है| देनिक मालिश इस झुनझुनी से छुटकारा दिलाती है|
रोज पैदल चलना और घूमना भी जरुरी है-
पैदल चलने से पैरों में रक्त का संचार अच्छा रहता है, और डायबिटिक फूट रोग से बचने में मदद मिलती है| साथ ही  रक्त शर्करा का भी पाचन होता रहता है मधुमेह भी नियंत्रण में रहता है|   
नंगे पैर रहना डायबिटिक फूट का एक बड़ा कारण है-
मधुमेह के रोगी को किसी भी परिस्थिति में बिना जूते चप्पल के नहीं चलना चाहिए| नंगे पैर रहने से धूल, जीवाणु, विषाणु, का संक्रमण का खतरा अधिक बढता है, छोटे छोटे कंकर, कांटे या किसी भी चीज की कोई खरोच त्वचा को हानि पहुंचती है| कुछ लोग हरी घांस में नंगे पैर चलने का सुझाव देते हें, वह भी मधुमेह के रोगोयों को हानिप्रद होगा|   
जूते भी  सही पहिने-
 हमेशा आरामदेह और सही साइज़ के जूते पहनना चाहिए| तंग ढीले या पतली नोक वाले या वजनदार जूते छाले, घाव, पैदा करते हें, आगे से नुकीले जूतों में पंजे कसे रहने से रक्त संचार रुकता है| चमड़े के जूते प्लास्टिक की तुलना में हमेशा अधिक अच्छे होते हें|
मोज़े पहनना भी होगा लाभदायक-
जूते भी बिना सूती मोज़े न पहिने और उन मोजों को भी नियमित धोते रहना भी आवश्यक है| सावधान गंदे, फटे और सिंथेटिक के मोज़े नहीं पहने जाएँ|  इनसे खरोंच, जीवाणु संक्रमण, होता है| मोजों में बदबू वाइरस की मोजुदगी का प्रमाण होता है|
पैर अधिक देर गीले न रहें-
मधुमेही को अपने परों को हमेशा सूखा (पर तेल से चिकना) रखना चाहिए, अधिक समय गीले रहने से फंगल संक्रमण का खतरा बढ़ता है|   
नाख़ून भी काटते रहे सावधानी से-
पेरों को साफ करने के साथ ही, नाखूनों को भी तराश कर ठीक रखना चाहिए, बड़े नाख़ून जीवाणुओं का आश्रय होते हें उनके ठोकर लगने पर टूटने का खतरा भी अधिक होता है| नाख़ून सावधान से काटें, अधिक नहीं काटना चाहिए, नहीं तो नई और बड़ी समस्या हो जाएगी|
ब्लड सुगर रखें हमेशा सामान्य-
याद रखना चाहिए की मधुमेह के किसी भी रोगी को कभी भी रक्त शर्करा सामान्य[2] से अधिक न रहे| क्यों की मधुमेह के कारण केवल पैर के अल्सर ही नहीं अन्य रोग जैसे सदमा (स्ट्रोक), हार्ट अटैक, आँखों की समस्या और गुर्दे का काम बंद (किडनी फ़ैल) जैसी समस्या भी होती है|
Diabetic foot – Which can be disabled.  (डायबिटिक फूट - एक अपंग बना सकने वाला रोग)
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अगले लेख - डायबिटिक फूट  की आयुर्वेदिक चिकित्सा जो बचाती सकती है अपंगता से| 
                डायबिटिज के रोगी को और क्या खतरे हो सकते हें| 


[1] {यदि किसी की पेर काटने की स्थिती आ चुकी है, और पैर काटने की सलाह दी गई है तो एक बार पाहिले आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श अवश्य कर लें, हमने कुछ रोगियों के पैर को कटने से बचाया है| इस बारे में अगले लेख में}

[2]  Normal BLOOD SUGAR  
Fasting -
             Without diabetes = 7099 mg/dl (3.95.5 mmol/L)
                   with diabetes =  80130 mg/dl (4.57.2 mmol/L)*
After meal (खाना खाने के दो घंटे बाद)
           without diabetes = Less than 140 mg/dl (7.8 mmol/L)
                with diabetes = Less than 180 mg/dl (10.0 mmol/L)*
HbA1c -
            Without diabetes=  Less than 5.7%
                  with diabetes= 7.0% or less*
*{Official American Diabetes Association (ADA) 2016 Guidelines}

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जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

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