अपस्मार (मिर्गी, एपिलेप्सी) - आयुर्वेदिक चिकित्सा हमारा अनुभव:-
हम वयस्कों में से शायद ही कोई हो जिसने कभी न कभी, किसी व्यक्ति को अचानक चक्कर खाकर गिरते, ओर फिर मुहँ
से झाग निकलते, दांत भिचे हुए न देखा हो। अक्सर एसा व्यक्ति विश्व
कि सबसे पुराने रोगों में ‘अपस्मार’ जिसे
वर्तमान में मिर्गी या एपीलेप्सि कहते हैं का शिकार होता है।
इस रोग (मिर्गी, एपिलेप्सी) के बारे में न केवल भारत मैं बल्कि विश्व के अनेक देशों में कई
भ्रांतियां, जेसै बुरी आत्म, प्रेत आक्रमण, देवी देवता की सवारी, जुडी हुई मिलतीं हैं।
आचार्य चरक
ने ४- से ५ हजार वर्ष पूर्व, चरक- सहिंता में अपस्मार के नाम
से वर्णन किया है। लिखा है कि मन ओर शरीर पर वात दोष युक्त मल रजो एवम तमो गुण नामक
मानसिक दोषों को प्रकुपित कर संघ्यावाही स्त्रोतों को अवरुद्ध कर देता है, रोगी अनुभव करता है कि वह अंधेरे में प्रवेश कर रहा है, इस प्रकार बेहोशी सी अवस्था में जमीन पर गिर कर, बुद्धि
हीन की तरह, हाथ पैर पटकना, दंत किटकिटाना, मुहँ से झाग निकालना, आदि क्रियायें करने लगता है, कुछ ही देर बाद होश में आकर, सामान्य होकर उठ जाता है।
आधुनिक चिकित्सा
शास्त्रके अनुसार मिर्गी (एपिलेप्सी) Epilepsy दिमाग यानि
मस्तिष्क तंत्र से जुडा रोग है, जिसमें मस्तिष्क विघुत तरंग
विघटन होने पर मस्तिष्क कोशिकाओं का शरीर अंगों से अचानक तालमेल बिगड़ जाता है इसे ही
र्मिगी दौरा माना जाता है। दौरा आने पर व्यक्ति अचेत, मूर्छित,
शरीर झटपटाना, मुंह से झाग आना, बेहोशी में चला जाता है, और मिर्गी दौरा पड़ने पर
व्यक्ति की मांसपेशियों शरीर अकड़ ऐठ जाता है। बार-बार इस तरह की क्रिया होने से ही
इसको मिर्गी दौरा कहा जाता है।
न्यूरोलॉजिस्ट
का कहना है कि मिर्गी (एपिलेप्सी) दिमाग से जुड़ा एक सामान्य रोग है जिसका इलाज
पूरी तरह संभव है। दवाओं के प्रयोग से 80 फीसदी रोगी ठीक हो
जाते हैं और बाकी 20 फीसदी रोगियों को ऑपरेशन की जरूरत पड़ती
है।
आधुनिक चिकिसा
विज्ञान, मिर्गी आने के कई कारण जसै सिर में पुरानी चोट, रक्त से ग्लूकोज या ओक्सिजन की कमी, मस्तिष्क के न्युरोंस का असंतुलन, नींद की कमी, दवायों के दुष्परिणाम, ब्रेन ट्यूमर, शरीर में विषाक्त पदार्थों को ज्यादा बनना, जेनेटिक
समस्या, आदी मानता है, पर अधिकांश मामलों
में यह सिद्ध नहीं हुआ है।
जिस भी रोगी
को मिर्गी दौरा पड रहा हो, उसे कभी अकेला ना छोड़ें, मिर्गी दौरा पड़े व्यक्ति
को जमीन पर ना लिटायें, मिर्गी पीड़ित व्यक्ति को आग, पानी आदि खतरे से दूर रखें। दौरा पड़ने पर चोट लगने से बचायें। मिर्गी के
दौरान रोगी की जीभ दांतों में बीच रूमाल रख कर कट्ने या भिचने से बचायें। मिर्गी
दौरा पड़ने पर पीडिता को होश में लाने के लिए चेहरे पर ठंड़े पानी के छींटे मारे। जूते
आदि न सुघायें, अचेत अवस्था में पीड़ित उग्र गंध जैसे तुलसी
पत्तें, लहसुन मसलकर, सुंघायें,तीव्र गंध बेहोशी
तोड़ने में सहायक होती है।
मिर्गी
दौरा पड़ने पर रोगी को पेट के बल, लिटायें, गर्दन
ऊपर की ओर रखें, जिससे
झाग, लार नाक में न जाने पाये। मिर्गी दौरा पड़ने पर व्यक्ति
के आस पास भीड़ ना करें। ताजी हवा खुला वातावरण बनायें।
चिकित्सा:-
आधुनिक चिकित्सा के अंतर्गत रोगी को तंत्रिका तंत्र पर शामक प्रभाव डालने वाली, नीदं लाने वाली दवायें दी जातीं हैं, रोग का दोरा तो
ठीक होता है पर इससे रोगी मानसिक रूप से कमजोर होने लगता है। ओर अक्सर रोगी को बहूत
अधिक समय अक्सर जीवन भर भी उन दवओं को खाना पड सकता है।
आयुर्वेदिक
चिकित्सा में मस्तिष्क के लिये पोषक ओषधि ओर शामक प्रभाव डालने वाली ऑषधि, सत्विक शीघ्र पाचन योग्य अधिक फाइबर वाल भोजन, व्यायाम, ओर स्वस्थ दिनचर्या का परामर्श दिया जाता है। विशेष चिकित्सा में शिरो-धारा
(पंचकर्म स्नेहन) आदि देतें हैं, जिनसे तंत्रिकाओं ओर न्युरोंस
के पोषण के साथ स्वभाविक निद्रा आने लगती है,ओर रोगी न केवल लाभ
प्राप्त करता है वरन मानसिक क्षति से भी बचा रहता है।
कई रोगी जो
लम्बे समय से एलोपेथिक ओषधि लेने से स्मरण शक्ति से प्रभावित होकर हमारे पास आकर चिकित्सा
ली वे पूर्ण स्वस्थ्य हुए, कई बच्चों ने शिक्षा प्राप्त कर उच्च पद भी पाया।
आयुर्वेदिक
चिकित्सा के अंतर्गत रोगी ओर रोग के वातादि दोषों के अनुसार ओषधि का चयन कर चिकित्सा
की जाती है, पर सामान्यत: यह रोग वात प्रधान त्रिदोषज पाया जाता है|
हम सामान्यत: निम्न ओषधियां ओर चिकित्सा व्यवस्था (विशेष परिस्थिति अनुसार अतिरिक्त) देते हैं,
इससे कई रोगी पुर्ण स्वस्थ्य हो चुके हैं। उनके द्वारा ली जा रही हानिकारक (गार्डिनोल) आदि बंद कर दी जातीं हैं| लगभग एक वर्ष के सतत प्रयोग से पूर्ण लाभ होजाता है, रोगी का मानसिक विकास होता है, हमारे कई रोगियों ने स्वस्थ्य होकर उच्च शिक्षा में सफलता प्राप्त की है|
निम्न ओषधियाँ हानिकारक नहीं हैं, परन्तु पूर्ण और शीघ्र लाभ के लिए, ओषधियों का प्रयोग चिकित्सक स्व विवेक से, दोष/दूष्य, रोगी क्षमता, आदि विचारकर मात्रा, अनुपान, आदि निश्चित कर सकता है|
नोट :- कोई भी एक ओषधि व्यवस्था, आदि सभी रोगियों के लिए निर्धारित नहीं की जा सकती, अत रोगी इनका प्रयोग अनुभवी चिकित्सक की सहायता से ही करे |
जानकारी चिकित्सकों हेतु दी जा रही है |
- रस रसायन = अष्ट मूर्त्ति रसायन , स्मृति सागर रस, अमर सुंदरी वटि,
- लोह आदि = नवायस लोह, पुनर्नवादि मंडूर ,
- घृत = पञ्च गव्य घृत, ब्राह्मी घृत,
- आसव आरिष्ट = सारस्वतारिष्ट, द्राक्षा रिष्ट,
- दूध में उबाल कर देने योग्य, = विदारी कंद +वायविडंग, लहसून,
- अन्य सहायक--वचा चूर्ण, शंख पुष्पी , खुरासानी अजवायन,
- शिरोधारा हेतु - अश्व गंधा तैल , ब्राह्मी तैल / घृत, आदि
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Epilepsy (Mirgi or Apasmar) - Ayurvedic treatment, our experience. [अपस्मार (मिर्गी, एपिलेप्सी) - आयुर्वेदिक चिकित्सा हमारा अनुभव]:- अयुर्वेदिक चिकित्सा से सम्भव है-रोग मुक्ति :-
इपीलेप्सी के निशुल्क चिकित्सा परामर्श हेतु रोगी सहित उज्जैन निवास क्लिनिक पर सोमवार से शनीवार तक प्रात:9 से 12 दोपहर 2 से 5 मिल सकते हैंं।
फोन पर चिकित्सा सम्भव नहीं।
डॉ मधु सूदन व्यास .
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समस्त चिकित्सकीय सलाह, रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान (शिक्षण) उद्देश्य से है| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें| इसका प्रकाशन जन हित में आयुर्वेदिक चिकित्सा के ज्ञान, सामर्थ्य, हेतु किया जा रहा है। चिकित्सा हेतु नजदीकी प्राधिक्रत आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लेँ। चिकित्सक प्रशिक्षण हेतु सम्पर्क करै।
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