मस्से नुकसान रहित त्वचा बढ़ोत्तरी के रूप में होते हैं जो ह्यूमन पैपिलोमावाइरस (एचपीवी) नामक विषाणु (वायरस) के कारण होते हैं। यह वायरस शरीर में ऐसी जगह से प्रवेश करता है जहां की त्वचा कटी-फटी हो और बाहर को छोटे गुमड़े के रूप में बढ़कर यह त्वचा की बाहरी परत को प्रभावित करता है। अधिकांश मामलों में मस्से महीनों या वर्षों के पीरियड के बाद अपने आप ही समाप्त हो जाते हैं। ये शरीर में कहीं पर भी सतह पर उत्पन्न हो सकते हैं लेकिन आमतौर से हाथों, पैरों और चेहरे पर पाये जाते हैं। हालांकि मस्से नुकसानरहित होते हैं लेकिन ये काफी परेशान करने वाले होते हैं और अपनी खास लोकेशन के कारण शर्मिन्दगी की वजह भी बन जाते हैं।
लक्षण
मस्से विभिन्न आकार-प्रकार और रंगों के हो सकते हैं। यह खुरदुरी सतह वाला गुमड़ा सपाट और मुलायम भी हो सकता है। इसका रंग त्वचा के रंग का, भूरा, गुलाबी या सफेद भी हो सकता है।
आमतौर से मस्से में दर्द नहीं होता लेकिन यदि ये ऐसे हिस्से में हैं जहां अक्सर दबाव पड़ता हो या वह हिस्सा मूवमेंट में रहता हो जैसे कि अंगुलियों के सिरे या पैरों के तलुए तो यह दर्दयुक्त भी हो सकता है।
इनके कटने-छिलने या निकालने की स्थिति में इनमें खारिश और खून बहने की स्थिति हो सकती है।
मस्से में रक्त वाहिनियों द्वारा खून और पोषक तत्व सप्लाई किये जाते हैं जो काले बिंदुओं सी दिखती हैं।
कॉमन वार्टस:
उभरे हुए वार्टस जिनकी बनावट खुरदुरी हो अक्सर हाथों पर पाये जाते हैं लेकिन ये शरीर में कहीं भी हो सकते हैं।
चपटे (फ्लैट) वार्टस:
ये अन्य वार्टस की अपेक्षा छोटे और मुलायम होते हैं। इनके सिरे फ्लैट होते हैं और ये आमतौर से चेहरे, बांहों और टांगों पर पाये जाते हैं।
फिलीफार्म वार्टस:
ये बढ़कर धागों जैसे दिखते हैं और ऐसे अधिकतर चेहरे पर पाये जाते हैं।
प्लांटर वाट्र्स:
आमतौर से पैरों के तलुवों में पाये जाते हैं और जब ये गुच्छों में बनते हैं तो मोजॉइक वार्टस के रूप में जाने जाते हैं। ये कड़े और मोटे पैच होते है जिनमें छोटे-छोटे काले बिंदु होते हैं जो कि वास्तव में रक्त वाहिनियां होती हैं। मूवमेंट जैसे कि चलने-फिरने और दौड़ने के दौरान इन वाट्र्स में दर्द होता है।
पेरिंयगुअल वार्टस:
ये अंगुलियों और अंगूठों के नाखूनों के नीचे और इर्द-गिर्द बनते हैं। इनकी सतह खुरदुरी होती है और ये नाखूनों की बढोत्तरी को प्रभावित कर सकते हैं।
जेनिटक (प्रजनन संबंधी) वार्टस:
ये लैंगिक प्रसारित बीमारियों (सैक्सुअली ट्रांसमिंटेड डिजीजेज-एसटीडी) का सबसे प्रचलित रूप हैं। ये शरीर के प्रजनन संबंधी हिस्सों जैसे कि योनि, लिंग, गुदा और अंडकोष (स्क्रोटम) पर बनते हैं। ये उभरे हुए या चपटे, अकेले या गुच्छों में बन सकते हैं और लैंगिक संभोग (सैक्सुअल इंटरकोर्स) के दौरान त्वचा के संपर्क से फैलते हैं।
कारण
ह्यूमन पैपिलोवाइरस (एचपीवी) वायरस के कारण उत्पन्न होते हैं जो बहुत संक्रामक और प्रत्यक्ष संपर्क द्वारा फैलता है। आप अपने वार्टस को छूने और उसके बाद अपने शरीर के दूसरे हिस्से को छूने भर से ही खुद को नये सिरे से संक्रमित कर सकते हैं। तौलिया या निजी उपयोग की दूसरी चीजों को मिल बांटकर इस्तेमाल करने से यह एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे में पहुंच सकता है। प्रत्येक व्यक्ति एचपीवी के खिलाफ अपने प्रतिरोधी तंत्र(इम्यून सिस्टम) की मज़बूती के अनुसार प्रतिक्रिया करता है। कुछ लोगों में वार्टस् की संभावना ज़्यादा होती है जबकि अन्य इस वायरस से प्रतिरक्षित रहते हैं। जेनिटल वार्टस बहुत संक्रामक होते हैं।
जोखिम के कारण
किसी भी कारण से कमजोर इम्यून सिस्टम आपके लिये वाट्र्स का खतरा बढ़ा सकता है। व्यक्ति से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपर्क जैसे कि पब्लिक टॉयलेट्स या डोर नॉब्स के ज़रिये संपर्क भी आपको जोखिम में डाल सकता है। त्वचा की सतह पर कटने-फटने से यह शरीर के एक हिस्से से दूसरे में फैल सकता है। जेनिटल वार्टस सैक्सुअल कांटेक्ट्स के ज़रिये फैलते हैं।
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