Rescue from incurable disease

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लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

तुलसी एक वेद कालीन दिव्य ओषधि- क्या कहता है आधुनिक विज्ञान?

तुलसी एक वेद कालीन दिव्य ओषधि- क्या कहता है आधुनिक विज्ञान?
तुलसी,  (ऑसीमम सैक्टम) तुलसी शब्द का अर्थ है  जिसकी किसी से तुलना न की जा सके वह तुलसी है। 
धर्म से  जुढ्ने के कारण ही तुलसी वैदिक काल से वर्तमान काल तक की गिनी चुनी परिचित ओषधियों में से एक है। 
जिसे हिन्दू धर्मग्रंथों मेँ  वैष्णवी, वृन्दा, सुगंधा,गंधहारिणी,अमृता, पत्रपुष्पा,पवित्रा, श्र्वल्लरी, सुभगा, तीब्रा, पावनी,विष्णुबल्लभा, माधवी, सुरवल्ली, देवदुंदुभी, विष्णुपत्नी, मालाश्रेष्टा,पापघ्नी, लक्ष्मी, श्री-कृष्ण वल्लभा, आदि कई नामो से वर्णित किया गया है।   सभी हिन्दू संप्रदायों ने तुलसी के चमत्कार ओर गुणो पर रीझ  कर  नामानुसार अंगीकार किया है। गुणो के कारण तुलसी, भारत मेँ यह हर हिन्दू का सुपरिचित, घर मेँ मिलने वाला का सर्व रोग निवारक तथा जीवन शक्ति संवर्धक, एक अति पवित्र पोधा है।
आजकल व्यावसायिक लोगों ने इसका अर्क निकाल कर प्रस्तुत किया है जो निश्चय ही लाभदायक सिद्ध हुआ है, पर इसका मूल्य अत्यधिक रखा गया है, जो एक प्रकार की लूट है। 
आप भी तुलसी अर्क या बिन्दु अपने घर पर बना सकते हें। लिंक इस पोस्ट के आखिर मेँ है।  
वनस्पति विज्ञान के अनुसार यह एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय, औषधीय पौधा है, जो झाड़ी के रूप में उगता है, यह १ से ३ फुट ऊँचा, बैंगनी आभा वाली हल्के रोएँ सो ढकी अंडाकार या आयताकार पत्तियाँ, जो १ से २ इंच लम्बी, सुगंधित ओर पुष्प मंजरी अति कोमल एवं ८ इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों ,जिनमें  चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार बीज होते हैं,  वर्षा ऋतु में उगने ओर शीतकाल में फूलने वाला यह पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है, इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देने लगती हें। 
 तुलसी की सामान्यतया निम्न 7 प्रजातियाँ पाई जाती हैं ।
  1. श्री तुलसी (ऑसीमम सैक्टम), हमारी सुपरिचित तुलसी जिसकी पत्र तथा शाखाएँ श्वेताभ हरी होती हैं।
  2. कृष्णा तुलसी या काली तुलसी, गम्भीरा या मामरी, (ऑसीमम अमेरिकन) कृष्ण तुलसी के पत्रादि कृष्ण रंग लिए होती हैं। गुण, धर्म की दृष्टि से काली तुलसी को ही श्रेष्ठ माना गया है, परन्तु अधिकांश विद्वानों का मत है कि दोनों ही गुणों में समान हैं।
  3. मरुआ तुलसी मुन्जरिकी या मुरसा (ऑसीमम वेसिलिकम।) स्वीट बेसिल या फ्रेंच बेसिल या इंडियन बेसिल या मीठी तुलसी काही जाने वाली यह प्रजाति भी बहुत ही उपयोगी है,इससे मीठा तुलसी का तेल (स्वीटबेसिल ऑइल) मिलता है। ओसीमम बेसिलिकम लेमिएसी कुल का पौधा है। इस पौधे की लम्बाई 30 से 90 से॰ मी॰ होती है, पत्तियों की लम्बाई 3-5 से॰ मी॰ होती है। पौधे में बहुत सी तेल कौशिकाएं होती है जो सुगंध तेल देती है।
  4. ऑसीमम (वेसिलिकम मिनिमम)
  5. राम तुलसी बन तुलसी (आसीमम ग्रेटिसिकम)
  6. कर्पूर तुलसी (ऑसीमम किलिमण्डचेरिकम )
  7. ऑसीमम विरिडी ।
तुलसी के पत्र, मूल, बीज उपयोगी अंग हैं।
इन्हें सुखाकर मुख बंद पात्रों में सूखे शीतल स्थानों पर रखा जाता है। इन्हें एक वर्ष तक प्रयोग में लाया जा सकता है । सर्वत्र एवं सर्वदा सुलभ होने से पत्रों का प्रयोग ताजी अवस्था में किया जाना ही श्रेष्ठ है।
 शास्त्रीय मत -  पत्तों को पूर्णिमा, अमावस्या, द्वादशी, सूर्य संक्रांति के दिन, मध्याह्न काल रात्रि दोनों संध्याओं के समय बिना नहाए-धोए न तोड़ा जाए। उपयुक्त समय पर तोड़ा जाना धार्मिक महत्त्व रखता है, जल में रखे जाने पर ताजा पत्र भी तीन रात्रि तक पवित्र ओर उपयोगी रहता है ।
गुण-कर्म संबंधी विभिन्न मत-
हिन्दू धर्म संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है । सरुपकृत त्वयोषधेसा सरुपमिद कृधि, श्यामा सरुप करणी पृथिव्यां अत्यदभुता। इदम् सुप्रसाधय पुना रुपाणि कल्पय॥ अथर्ववेद (1-24) 
अर्थात्-श्यामा तुलसी मानव के स्वरूप को बनाती है, शरीर के ऊपर के सफेद धब्बे अथवा अन्य प्रकार के त्वचा संबंधी रोगों को नश्ट करने वाली अत्युत्तम महौषधि है।
आयुर्वेद का साहित्य तुलसी के गुणो से भरा हुआ है। 
महर्षि चरक प्राचीन विद्वान आयुर्वेद जनक,  तुलसी के गुणों का वर्णन लिखते हैं-
हिक्काकासविषश्वास पार्श्वशूलविनाशनः । पित्तकृत् कफवातघ्न्रः सुरसः पूतिगन्धहाः॥
तुलसी हिचकी, खाँसी, विष, श्वांस रोग और पार्श्व शूल को नष्ट करती है । यह पित्त कारक, कफ-वातनाशक तथा शरीर एवं भोज्य पदार्थों की दुर्गन्ध को दूर करती है । 
गौरवे शिरसः शूलेपीनसे ह्यहिफेनके । क्रिमिव्याधवपस्मारे घ्राणनाशे प्रेमहेके॥ 
(चरक संहिता सूत्र स्थान २/५)
सिर का भारी होना, पीनस, माथे का दर्द, आधा शीशी, मिरगी, नासिका रोग, कृमि रोग तुलसी से दूर होते हैं । सुश्रुत महर्षि का मत भी इससे अलग नहीं है । वे लिखते हैं-
कफानिलविषश्वासकास दौर्गन्धनाशनः । पित्तकृतकफवातघ्नः सुरसः समुदाहृतः॥ 
(सुश्रुत संहिता सूत्र स्थान४६)
तुलसी, कफ, वात, विष विकार, श्वांस-खाँसी और दुर्गन्ध नाशक है। पित्त को उत्पन्न करती है तथा कफ और वायु को विशेष रूप से नष्ट करती है । 
आचार्य वाग्भट्ट का भाव प्रकाश में उद्धरण है-
तुलसी पित्तकृद वात कृमिर्दोर्गन्धनाशिनी । पार्श्वशूलारतिस्वास-कास हिक्काविकारजित॥
तुलसी पित्तनाशक, वात-कृमि तथा दुर्गन्ध नाशक है । पसली का दर्द, अरुचि, खाँसी, श्वांस, हिचकी आदि विकारों को जीतने वाली है । आगे वे लिखते हैं-यह हृदय के लिए हितकर, उष्ण तथा अग्निदीपक है एवं कुष्ट-मूत्र विकार, रक्त विकार, पार्श्वशूल को नष्ट करने वाली है । श्वेत तथा कृष्णा तुलसी दोनों ही गुणों में समान हैं ।
निघण्टुकार के अनुसार तुलसी पत्र अथवा पत्र स्वरस उष्ण, कफ निस्सारक, शीतहर, स्वेदजनन, दीपन, कृमिघ्न, दुर्गन्ध नाशक व प्रतिदूषक होता है । इसके बीज मधुर, स्निग्ध, शीतल एवं मूत्रजनन होते हैं ।आधुनिक मत - तुलसी में अनेकों जैव सक्रिय रसायन पाए गए हैं, जिनमें ट्रैनिन, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं। हालांकि अभी भी पूरी तरह से इनका विश्लेषण नहीं हो पाया है। इंका प्रमुख सक्रिय तत्व, एक प्रकार का पीला उड़नशील तेल होता है।  जिसकी मात्रा संगठन (कंपोज़ीशन), स्थान व समय के अनुसार बदलते रहते हैं। इसमें 0.1 से 0.3 % प्रतिशत तक तेल पाया जाना सामान्य बात है।
  इसके तेल में लगभग 
71% प्रतिशत- यूजीनॉल, 
20%  प्रतिशत यूजीनॉल मिथाइल ईथर, 
3% कार्वाकोल होता है। 
तेल के अतिरिक्त प्रति 100 ग्राम पत्रों में 
83 मिलीग्राम लगभग विटामिन सी 
2.5 मिलीग्राम कैरीटीन होता है। 
तुलसी बीजों में हरे पीले रंग का तेल लगभग 17.8 %  पाया जाता है। इसके अन्य घटक हैं कुछ सीटोस्टेरॉल, अनेकों वसा अम्ल मुख्यतः पामिटिक, स्टीयरिक, ओलिक, लिनोलक और लिनोलिक अम्ल। तेल के अलावा बीजों में  म्युसिलेज भी होता है जिसके प्रमुख घटक हैं-पेन्टोस, हेक्जा यूरोनिक अम्ल और 0.2% राख (एश)। 
श्री तुलसी में श्यामा की अपेक्षा कुछ अधिक तेल होता है,  इस तेल का सापेक्षिक घनत्व भी कुछ अधिक होता है। 
तुलसी द्वारा परमाणु विकिरण की चपेट में आए लोगों के इलाज के प्रारम्भिक परिणाम हें, उत्सावर्धक।  
वैज्ञानिक तुलसी का प्रयोग परमाणु विकिरण की चपेट में आए लोगों के इलाज में खोज कर रहे हैं, और प्रारम्भिक परिणाम उत्सावर्धक रहे हैं। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के वैज्ञानिकों ने विकिरण प्रभावित लोगों के इलाज के लिए तुलसी से एक औषधि का विकास किया है। अब इस पर दूसरे चरण का प्रयोग चल रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक तुलसी में ऑक्सीडेशन गुण पाया है, जिसका उपयोग विकिरण से क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत में किया जा सकता है।
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हमारा लक्ष्य सामान्य जन से लेकर प्रत्येक विशिष्ट जन को समग्र स्वस्थ्य का लाभ पहुँचाना है| पंचकर्म सहित आयुर्वेद चिकित्सा, स्वास्थय हेतु लाभकारी लेख, इच्छित को स्वास्थ्य प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य विषयक जन जागरण करना है| आयुर्वेदिक चिकित्सा – यह आयुर्वेद विज्ञानं के रूप में विश्व की पुरातन चिकित्सा पद्ध्ति है, जो ‘समग्र शरीर’ (अर्थात शरीर, मन और आत्मा) को स्वस्थ्य करती है|

निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

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