गौर वर्ण (गोरा रंग) केसे रहे?
सूर्य के प्रकाश या धूप के लगातार संपर्क आने से सूर्य की अल्ट्रावॉयलेट किरणें मेलैनोसाइट्स (शरीर का रंगने वाले सेल्स) अधिक मेलानिन बनाने लगते हें। यही मेलोनिन की अधिकता त्वचा का रंग बदलती है। हालांकि यही मेलोनिन त्वचा की रक्षा भी करती है। पर यदि पूरी तरह से धूप और प्रकाश से बचते रहे तो भी विटामिन डी आदि की कमी, और मेटाबोलिक समस्याएँ उठ खड़ी होंगी, शरीर कमजोर हो जाएगा। गौर वर्ण वालों की तुलना में गहरे रंग (गेहुवाँ या काले रंग) वाले अधिक शारीरिक श्रम कर सकते हें।
मेलोनिन की अधिकता से त्वचा काली पड़ती है, शरीर के खुले भागों पर अधिक असर होता है। यही टेनिंग है।
बचने के लिए, अधिक समय धूप के संपर्क में न रहें, जरूरी हो तो त्वचा को ढ़क कर छाता लगाकर, घर से निकालना चाहिए।
गौर वर्ण पाने के लिए, केशर, चन्दन और हल्दी, मंजीठ को गुलाब जल के साथ घिस कर, चंदन तैल और ग्लिसरीन के साथ मिलकर लगाएँ। इससे रंग और भी खिलेगा साथ ही अल्ट्रावॉयलेट रेज़ से बचाव भी होगा।
कुंकुमादी तैल,या किंशुकादी तेल जो आयुर्वेदिक स्टोर्स पर मिलता है, वह भी लगभग इन्ही ओषधियों (और भी अधिक) से बनाया जाता है। का प्रयोग भी कर सकते हें। इससे मुहाँसे, चेहरे के दाग, काली, झाईं आदि भी दूर होते हें मुख तेजस्वी बनाता है।
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