Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

Snehan [purva karma of panchakarma] स्नेहन|

 स्नेहन {Snehan} पंचकर्म के पूर्व किया जाना वाला कार्य है, कई रोगों में केवल स्नेहन से ही रोगी को रोग मुक्त किया जा सकता है|  
आयुर्वेद में अभ्यंग या मालिश "स्नेहन' के अंतर्गत आती है| स्नेहन विषयक जानकारी देखें-  स्नेहन पंचकर्म का पूर्व कर्म तो है ही साथ ही यह कई रोगों के लिए सम्पूर्ण चिकित्सा भी है|
स्नेह का अर्थ है, विशेष प्रेम, स्नेह स्निग्ध घी तैल आदि चिकनाहट को भी कहते हें| स्निग्ध (चिकना) करने की क्रिया स्नेहन कहलाती है| स्नेह जैसे शुष्क व्यवहार को नरम बनादेता है उसी प्रकार शरीर को भी स्नेहन से मृदु या नरम बनाया जाता है| जब शरीर की रुक्षता (सूखापन) शुष्कता (खुश्की) बढ़ जाती है, तब आन्तरिक किला-पिलाकर या बाहरी अभ्यंग(मालिश) आदि से इसे दूर किया जा सकता है|
आयुर्वेद सिद्धांतों के अनुसार यह शुष्कता, रुक्षता का कारण वायु (Vata वात दोष) की वृद्धि होती है, शुष्कता से शूल (दर्द), कंडू (खुजली),आदि होने लगता है इसलिए जोढ़ों में दर्द. सर दर्द आदि को वात-विकार माना कहा जाता है, और स्नेहन इसको दूर करता है इसीलिए वात रोगों में स्नेहन श्लोक- “वाते स्नेहनम“ कहा जाता है|
स्नेहन कार्य पंचकर्म का एक पूर्व कर्म है, इसका अर्थ है की यह प्रत्येक पंचकर्म प्रक्रिया के पूर्व किया जाने वाला आवश्यक चिकित्सा कर्म है| 
जब वात दोष अधिक बढ़ा हुआ न हो, स्थानीय (एक बाह्य भाग में) हो तो केवल स्नेहन से ही रोगी का कष्ट दूर हो जाया करता है| 
आयुर्वेद चिकित्सा के अंर्तगत स्नेहन कई प्रकार से किया जा सकने वाला स्नेहन बाह्य एवं आभ्यंतर (आन्तरिक) दो प्रकार का होता है| बाह्य का अर्थ शरीर पर अभ्यंग या मालिश, कान, या सिर, पर स्नेह प्रयोग एवं आन्तरिक अर्थात मुहं से सेवन करना है| बाह्य स्नेहन से केवल स्थान विशेष का स्नेहन,  परन्तु अंत: स्नेहन से सारे शरीर को प्रभावित किया जा सकता है|
बाह्य स्नेहन को आयुर्वेद चिकित्सा में निम्न प्रकार से उपयोग किया जाता है|
1- 'अभ्यंग' , 2- मर्दन. 3- लेप. 4- उद्वर्तन. 5- संवहन. 6- पादाघात. 7-मूर्ध तैल- {aशिरोभ्यंग, b- शिर:सेक, (शिरोधारा) c- शिर:पिचु, d-शिरोबस्ती, } . 8- गंडूष. 9- कर्ण-पूरण. नासा पूरण, 10- अक्षितर्पण. 11- परिषेक. 12- पिचु धारण. 13 - मस्तिष्क्य (शिरो बस्ती),14- स्नेह अवगाहन, 15- ग्रीवा बस्ती (तर्पण),16- प्रष्ठ बस्ती,17-  जानू बस्ती
शिरो लेप के अंतर्गत ही केरलीय थालापोथिचिल भी आता है|
'अभ्यंग' - 'अभ्यंग' का अर्थ शरीर पर तैल आदि लगाना (या मालिश), सामान्यत: अभ्यंग के अंतर्गत ही 'लेप', 'मर्दन', 'उद्वर्तन', आदि भी आते हें परन्तु सभी में थोडा थोडा प्रक्रिया भेद होता है| अभ्यंग आराम से सुख पूर्वक अनुलोम गति से अर्थात रोम (बाल) उगने की दिशा) में, किया जाता है, जबकि 'उद्वर्तन' प्रतिलोम या विपरीत दिशा में थोडा ताकत से मालिश है| मर्दन में अधिक बल देकर जोर से मालिश की जाती है| 
  • अभ्यंग के बारे में जाने अधिक - कैसे करते हें? कोन इसके योग्य कोन अयोग्य? , अब्यंग के लिए उपयुक्त तैल आदि?, शरीर की किन किन स्थितियों में अभ्यंग करें? कितने समय तक करें? अभ्यंग के बाद क्या करें? इसके क्या लाभ हैं?  लिंक-  Abhyng (अभ्यंग) - The Massage of Ayurveda. 
'संवहन' हाथ से सुखकारक स्पर्श है जो विशेषकर शिशु जैसे कोमल शरीर वालों के लिए की जाती है| 
'पदाघात' से तात्पर्य पेरोंं से शरीर को मालिश करते हुए, दवाना (प्रेशर देना) होता है| परिषेक ओषधि मिश्रित तैल, घृत, क्वाथ आदि से शरीर पर धारा गिरना परिषेक, जिसे सेक, सेचन, परिसेचन, आदि भी कहा जाता है|
'मूर्ध तैल' से तात्पर्य सिर पर मालिश, सेक आदि से है| इसके अंतर्गत शिरोभ्यंग (सिर पर मालिश), 'शिर:सेक' को ही 'शिरोधारा' भी कहा जाता है, इसमें माथे (forehead) पर तैल अदि द्रव की धारा डाली जाती है|
'शिर:पिचु' में सिर के मध्य में गोज को तैल आदि में भिगोकर रखते हें| 'शिरोबस्ती' में एक चमड़े या रेग्जीन आदि की दोनों तरफ खुली टोपी सिर पर लगा, उसमें तेलादी भरते हें| 'मस्तिष्क्य' को भी शिरो बस्ती कुछ आचार्य मानते हें| इसमें सिर पर ओषधि और पत्रादि तैल, तक्र आदि में पीस कर टोपी की तरह केले, आदि के पत्ते से ढक कर बांध दिया जाता है|       
'गंडूश' ओषधि तैल क्वाथ आदि को मुहं में धारण (रखना, या कुल्ले) करना,कान और नाक में तैल डालना कर्ण या नासिका पूरण होता है| तैल आदि से टब आदि में बैठकर सर्वांग स्नान 'अवगाहन' है| गर्दन, पीठ, कमर, घुटना आदि पर एक कुंड बना कर तैल भरना, 'ग्रीवा, प्रष्ठ बस्ती, और जानू बस्ती' (तर्पण), करना होता है| 
नेत्रों के रोगों के लिए नेत्रबस्ती के माध्यम से 'अक्षितर्पण' किया जात है जो आधुनिक चिकित्सा में असाध्य शुष्काकक्षिपाक (ड्राई ऑय सिंड्रोम) के लिए यह सर्वोपरि चिकित्सा है|
आभ्यंतर स्नेहन - 1- भोजन, 2- पान (पिलाकर), 3- नस्य, 4- बस्ती, इन चार प्रकार से किया जाता है|

प्रमुख स्नेहन प्रक्रियाओं का विस्तार से वर्णन, जिनसे रोग विशेष की चिकित्सा की जाती है, के विषय में अगले लेख में मिल सकेगा|  
आज की बात (28) आनुवंशिक(autosomal) रोग (10) आपके प्रश्नो पर हमारे उत्तर (61) कान के रोग (1) खान-पान (69) ज्वर सर्दी जुकाम खांसी (22) डायबीटीज (17) दन्त रोग (8) पाइल्स- बवासीर या अर्श (4) बच्चौ के रोग (5) मोटापा (24) विविध रोग (52) विशेष लेख (107) समाचार (4) सेक्स समस्या (11) सौंदर्य (19) स्त्रियॉं के रोग (6) स्वयं बनाये (14) हृदय रोग (4) Anal diseases गुदरोग (2) Asthma/अस्‍थमा या श्वाश रोग (4) Basti - the Panchakarma (8) Be careful [सावधान]. (19) Cancer (4) Common Problems (6) COVID 19 (1) Diabetes मधुमेह (4) Exclusive Articles (विशेष लेख) (22) Experiment and results (6) Eye (7) Fitness (9) Gastric/उदर के रोग (27) Herbal medicinal plants/जडीबुटी (32) Infectious diseaseसंक्रामक रोग (13) Infertility बांझपन/नपुंसकता (11) Know About (11) Mental illness (2) MIT (1) Obesity (4) Panch Karm आयुर्वेद पंचकर्म (61) Publication (3) Q & A (10) Season Conception/ऋतु -चर्या (20) Sex problems (1) skin/त्वचा (26) Small Tips/छोटी छोटी बाते (69) Urinary-Diseas/मूत्र रोग (12) Vat-Rog-अर्थराइटिस आदि (24) video's (2) Vitamins विटामिन्स (1)

चिकित्सा सेवा अथवा व्यवसाय?

स्वास्थ है हमारा अधिकार १

हमारा लक्ष्य सामान्य जन से लेकर प्रत्येक विशिष्ट जन को समग्र स्वस्थ्य का लाभ पहुँचाना है| पंचकर्म सहित आयुर्वेद चिकित्सा, स्वास्थय हेतु लाभकारी लेख, इच्छित को स्वास्थ्य प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य विषयक जन जागरण करना है| आयुर्वेदिक चिकित्सा – यह आयुर्वेद विज्ञानं के रूप में विश्व की पुरातन चिकित्सा पद्ध्ति है, जो ‘समग्र शरीर’ (अर्थात शरीर, मन और आत्मा) को स्वस्थ्य करती है|

निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

चिकित्सक सहयोगी बने:
- हमारे यहाँ देश भर से रोगी चिकित्सा परामर्श हेतु आते हैं,या परामर्श करते हें, सभी का उज्जैन आना अक्सर धन, समय आदि कारणों से संभव नहीं हो पाता, एसी स्थिति में आप हमारे सहयोगी बन सकते हें| यदि आप पंजीकृत आयुर्वेद स्नातक (न्यूनतम) हें! आप पंचकर्म चिकित्सा में रूचि रखते हैं, ओर प्रारम्भ करना चाह्ते हैं या सीखना चाह्ते हैं, तो सम्पर्क करेंं। आप पंचकर्म केंद्र अथवा पंचकर्म और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे अर्श- क्षार सूत्र, रक्त मोक्षण, अग्निकर्म, वमन, विरेचन, बस्ती, या शिरोधारा जैसे विशिष्ट स्नेहनादी माध्यम से चिकित्सा कार्य करते हें, तो आप संपर्क कर सकते हें| सम्पर्क समय- 02 PM to 5 PM, Monday to Saturday- 9425379102/ mail- healthforalldrvyas@gmail.com केवल एलोपेथिक चिकित्सा कार्य करने वाले चिकित्सक सम्पर्क न करें|

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

स्वास्थ /रोग विषयक प्रश्न यहाँ दर्ज कर सकते हें|

Accor

टाइटल

‘head’
.
matter
"
"head-
matter .
"
"हडिंग|
matter "