Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

Why are more restrictions in Ayurvedic medicine? (आयुर्वेद चिकित्सक अधिक परहेज क्यों बताते हें?)

आयुर्वेदिक चिकित्सा में अधिक प्रतिबंध क्यों होता है? या 
आयुर्वेद चिकित्सक अधिक परहेज क्यों बताते हें?
इस प्रकार के कई प्रश्न अक्सर किये जाते हें| इस बात को जानने के लिए पढिये निम्न जानकारी:- 

हर व्यक्ति स्वस्थ्य रहना चाहता है, वह यह भी चाहता है की उसे कभी भी कोई रोग या कष्ट न हो|
यदि सचमुच में निरोगी रहना चाहता है, तो उसे रोग या कष्टों का कारण भी जानना होगा|
पर अक्सर जब इनका कारण वह तब जान पाता है जब वह किसी न किसी रोग या कष्ट से प्रभावित हो जाता है| कारण दुःख होने के बाद ही इस और विचार करता है, यदि स्वस्थ-अवस्था में ही यह जानकारी हो जाये to रोग होगा ही क्यों? 
यदि अभी स्वस्थ है और आगे भी स्वस्थ रहना चाहते हें?
अथवा आपको निम्न में से कोई भी कष्ट, या रोग है और आप उसे दूर करना चाहते हें तो आपके लिए यह जानकारी वाला लेख पड़ना चाहिए|
लगभग सभी समस्याओं या रोगों और कष्ट का कारण है रक्त में अम्ल की अधिकता या एसिडोसिस होना:-
यदि आप स्वस्थ्य नहीं हैं और
हृदयरोग,
वजन बढ़ानामोटापे ,
मधुमेह,
मूत्ररोग, पथरी,
प्रतिरक्षा कमी से बार बार रोग ग्रस्त होना, (Immune deficiency),
थाईराइडआदि हार्मोनल समस्या,
 समय से पूर्व बुढ़ापा,
 हड्डियों की कमजोरी (ऑस्टियोपोरोसिस Osteoporosis) जोड़ों के दर्द (joint pain),
शक्ति में कमी कमजोरी और थकान का अनुभव,
 पाचन में कमी, एसिडिटी 
 फंगल संक्रमक, शरीर ठंडा अनुभव होना, किसी भी संक्रमण सेजल्दी ग्रस्त होना,
 सम्भोग क्षमता में कमी, अनुत्साह,  निराशा की प्रव्रत्ति,
 आसानी से तनाव होना,
 शरीरका पीला पढना,
 सिर दर्द , आंखे लाल रहना, पलकों पर सूजन,
 दांत में दर्द, या हिलना,मसूड़ों में सनसनी होना ठंडा या गरम पानी लगना,
 मुंह, पेट में या दोनों में अल्सर,
 होंठ फटना,
 पेट या छाती में जलन दर्द (एसिडिटी) आमाशय में सूजन (Gastritis)
 नाखूनो का पतला होना और आसानी से टूटना,
 शिर के बालों का निस्तेज होना,झाड़ना, दो मुहें होना,
 त्वचा का रुखा रहना (Dry skin), त्वचाका सामान्य कारणों से ही प्रभावित हो जाना,
 पैरों में ऐंठन, बायटे ( spasms),  होना जैसी किसी भी एक या अनेक समस्याओं से पीड़ित हैं तो इसका एक मात्र कारण है आपके रक्त में अम्ल की अधिकता या एसिडोसिस होना?  
इस सूची को देख कर तो यही लगता है की शायद ही कोई रोग हो जो इसमें शामिल नहीं! 
कुछ हद तक यह सही भी है| क्योंकि सभी रोगों का प्रमुख कारण एसिडोसिसी या अम्लता का अधिक होना ही है| यहाँ तक की कई रोग जो विषाणु, जीवाणु, पेरासाईटस, आदि के कारण भी होते हें वे भी अम्लीयता के अधिक होने से रोग प्रतिरोधक शक्ति की कमी, शरीर के कमजोर होने से ही होते हें| 
विश्व में आज इन समस्याओं (रोगों) में आश्चर्यजनक संख्या में वृद्धि हुई है, अमरीका ब्रिटेन सहित विश्व चिकित्सा वैज्ञानिक इसका एक मात्र कारण खाद्य पदार्थों को देते हें|  आज औद्योगिक देशों में बहुत बड़ी जनसंख्या इस एसिडोसिस से होने वाली समस्याओं से ग्रस्त है, क्योंकि पाया गया है की आधुनिक जीवनशैली और आहार दोनों ही इसका एक मात्र कारण हैं|
सभी के खाने में सामान्यत: एसिड बनाने वाले खाद्य पदार्थ (प्रोटीन proteins, अनाज cereals, कार्बोहाईड्रेड़ (शर्करा sugars) विशेष रूप से होता है| फेट्स सभी में अतिरिक्त रूप से सम्मलित किया जाता है| क्योंकि फेट्स की अधिकता स्वाद को अधिक बढाती है| लेकिन ये सभी अधिक एसिड बनाने का कार्य करते हें| इनके  साथ सब्जियों का प्रयोग बहुत ही कम मात्रा में किया जाने का स्वभाव बन गया है| इसी कारण आयुर्वेद में अधिकांश मामलों में इनका परहेज बताया जाता है|   
खाने के अतिरिक्त पान, सुपारी, तंबाकू, कॉफी, चाय और शराब जैसे उत्तेजक पदार्थ भी इस अम्लीकरण और बड़ा रहें हें कर रहे हैं।
केवल कहाँ-पान ही नहीं शारीरिक गतिविधि में असंतुलन (अपर्याप्त या अत्यधिक मात्रा दोनों) भी अम्लीकरण का कारण बनता है|
प्रथम दृष्टि में कई खाध्य पदार्थ जो न तो अम्लीय हैं और न क्षारीय वे भी अन्य खाद्य पदर्थों के साथ मिलकर बनाये जाने से खाने पर एसिड बनाते हैं| हमारे विज्ञापन वाले खाद्य पदार्थों में इनकी सूचि बहुत ही बड़ी है, इसी लिए इनका प्रयोग अधिक हो रहा है|
 अक्सर हमारे देश में कहा जाता है की आयुर्वेदिक चिकित्सक परहेज बहुत बताते हें! और अक्सर आयुर्वेद वाले सामान्य रूप से गुड, तेल, खटाई, का परहेज बताते पाए जाते हें| ये तीनों अम्लीयता बढाने के लिए जग प्रसिद्ध है| 
मित्रो आयुर्वेद पिछले पांच हजार वर्ष से कह रहा है की अधिकतर सभी रोगों का एक मात्र कारण मिथ्याहार- विहार है| अभी तक पाश्चात् विचार के आधार पर इस बात का मजाक उड़ाया जाकर कहा जाता रहा है की, रोगों का कारण विषाणु, जीवाणु आदि आदि है|  पर अब वे सभी एक मत से आयुर्वेद के इस सिधांत को स्वीकार करने पर मजबूर हो गयें है, और शोधो में इनका कारण एसिडोसिसी होना सिद्ध मान लिया गया है|
आयुर्वेद अनुसार कारण यदि एक शब्द एसिडोसिसी नहीं होकर इस एसिडोसिस होने का कारण भी मिथ्याहार विहार ही है|  
जो भी हो, हमको, हमारे परिवार और दोस्तों को ये शोध, स्पष्ट रूप से एक विशेष आहार खाने के लिए प्रेरित करता है, जो सही ढंग से एसिड को संतुलित कर सके, यही आयुर्वेदिक परहेज की भावना होती है|
इसके अनुसार शरीर को स्वस्थ्य और उपरोक्त समस्याओं से बचाने और समस्या यदि हो गईं हों तो दूर करने के लिए एसिड उत्पन्न करने वाले खाद्यों से परहेज की भावना उत्पन्न करनी ही होगी|
पश्चात् देशों में हुए शोध के अनुसार हमारे आहार में कम से कम 60% क्षारीय उत्पादक खाद्य पदार्थों का उपभोग करना स्वास्थ्य संतुलन के लिए आवश्यक होगा| इसके लिए हमें ताजा, मोसमी, और क्षेत्र में पैदा होने वाले फल और विशेष रूप से सब्जियां (क्षारीय उत्पादन) की आवश्यकता है|  हमारे द्वारा लिए जा रहे, आवश्यक प्रोटीन आदि से होने वाले एसिड उत्पादन को नियंत्रित करने के लिए  क्षारीय खाद्यों को 60% से अधिक लेना अनिवार्य होगा|
यें अम्ल बडाने वाले खाद्य न केवल एसिड उत्पादक हैं, बल्कि वे इसके साथ ही रक्त में सुगर का स्तर भी तेजी से बढ़ाते हें| ऐसे खाने वाले पदार्थ का ग्लाइसेमिक इंडेक्स  अधिक होता है, इससे इंसुलिन मिलने की गति और मात्रा तेजी से न बढ़ पाने या घट  पाने से शरीर ता ताल-मेल प्रभावित होने लगता है, पेनक्रियाज के बीटा सेल क्षति ग्रस्त होने से मोटापा और तनाव होकर मधुमेह का रोग बन जाया करता है|
यही नहीं इस प्रकार के खाना को खाने से पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, कभी कभी ये विषेले प्रभाव भी डालते हें|
सामन्यत: हमारा शरीर होमियोस्टेसिस [1] द्वारा, हर कीमत पर रक्त में सही पीएच को बनाए रखने की कोशिश करता है, पर यह कार्य भी खाद्य पदार्थों के बार बार असंतुलिन या मिथ्याहार-विहार के परिणाम स्वरूप प्रभावित हो जाता है और अपन स्वभाविक कार्य नहीं कर पाता, और व्यक्ति मधुमेह से पीड़ित हो जाता है|
रक्त में अम्ल की मात्रा का ज्ञान शरीर के pH से किया जा सकता है|
हमारे शरीर में पानी सबसे अधिक मात्रा में पया जाने वाला यौगिक है, यह शरीर का 70% भाग होता है। इस तरल पदार्थ पानी को निरंतर संशोधित सयंमित करने या समाधान करने के लिए की एक विस्तृत व्यवस्था होती है| यह व्यवस्था इस पानी को न अधिक अम्लीय और न ही क्षारीय होने देती|
परन्तु शरीर पर मिथ्याहार विहार के सतत दवाव से प्रक्रिया अनियंत्रित होकर दिशाहीन होने लगती है, और मधुमेह और ऊपर वर्णित समस्याएं पैदा हो जातीं है|
 इसी कारण आयुर्वेद चिकित्सा में परहेज को सर्वोपरि समझा जाता है| रोग की मुक्ति के साथ साथ रोग मुक्त्त स्वस्थ्य शरीर के लिए भी यह आवश्यक होता है| संतुलित आहार के नाम पर केवल प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फेट्स, विविध सामग्री खान-पान में सम्मलित होती है| शरीर के तरल भाग की पूर्ति, या संतुलन का अधिकतर ध्यान नहीं रखा जाता, जो फलों, सब्जियों विविध सलाद, आदि के माध्यम से मिलता है| 
वास्तव में हमारे देनिक खाने का एक बड़ा हिस्सा लगभग 50% इन्ही का होना चाहिए, जिससे होने वाली अम्लता स्वयं कम हो सके| जरुरी नहीं की महंगी सब्जी फल ही खाए जाएँ सस्ते, गाजर, प्याज, पलक आदि पत्ते वाली सब्जियों जैसे पदार्थ बिना फेट मिलाये या नाम मात्र मिलाकर प्रयोग किये जाने से एसिडोसिसी से बचकर तमाम समस्याओं से बचा जा सकता है|      
आयुर्वेद में इस एसिड़ोसिस को मिथ्याहार से उत्पन्न बतलाया है|   
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार रक्त के अम्लीय या एसिडीक होने के लिए कई रोगों को कारण बताये हें| उनके अनुसार यह दो प्रकार में होता है| 
पहला  श्वसन अम्लरक्तता (respiratory acidosis), और दूसरा चपापचय जन्य अम्ल रक्तता (metabolic acidosis).
श्वसन अम्लरक्तता तब होता है जब बहुत अधिक कार्बन डाई ओक्साइड (CO2) शरीर में बनाती है| सामान्य परिस्थिति में यह श्वास-निश्वांस प्रक्रिया (breathing) में निकल जाती है, पर कई बार अस्थमा, छाती की चोट, मोटापा, नशा, शराब की अधिकता, तंत्रिका तंत्र की दुर्बलता, आदि कारण से निकल नहीं पाती और रक्त में पहुंचकर रोग पैदा करती है|  
चपापचय जन्य अम्ल रक्तता (Metabolic acidosis)-  सामान्य स्थिति में शरीर के अम्ल आदि शेष बेकार पदार्थ की  सफाई वृक्क (गुर्दों –किडनी) द्वारा होती है, पर जब गुर्दे (वृक्क kidney) पूरा अम्ल निकाल नहीं पाते यह स्थिति होती है|
मधुमेहज अम्लरक्तता (Diabetic acidosis) जब मधुमेह (Diabetes) रोग को अनदेखा किया जाता है तब यह होती है| इन्सुलिन की कमी से कीटोन्स रक्त को अम्लीय बनाने लगता है, यह अम्ल और अधिक इन्सुलिन बनाने वाले बीटा सेल्स को नष्ट करने लगता है, और मधुमेह असाध्य हो जाता है|  
उक्त तीनो प्रकार में उपरोक्त सभी रोग या समस्याएं स्वयं ही सम्मलित हो जातीं है|
सामान्यत: रक्त में आये अम्ल को सम करने, या बेअसर (neutralize) करने का काम रक्त में शाक सब्जी आदि भोजन से प्राप्त क्षार (sodium bicarbonates) करते हें, किसी भी कारण जिनमें उलटी, दस्त, से उनका निकलना, शराब सेवन, से अधिक लेक्टिक एसिड बनाना, भी हो सकता है के कारण भी रक्त अम्लता हो जाती है, जो लगातार रहे तो रोग पैदा करती है|
अधिक चर्वी (फेट्स वसा), और कम कार्बोहाइड्रेट वाले खाना खाते रहने से, गुर्दे की खराबी से (kidney failure), मोटापे से (obesity), निर्जलीकरण से (dehydration), एस्प्रीन आदि का दवाएं खाने से, और मधुमेह नियंत्रण न होने पर अम्ल रक्तता और बड़ने लगती है|
रक्त में अम्लता बड़ना एक दुश्चक्र की तरह होता है, जैसे जब अम्ल बढ़ता है तो रोग होते हें फिर रोगों से अम्ल बढता है, और यह अंत हीन चक्र शुरू हो जाता है|
कैसे तोड़ें इस अंतहीन चक्र को?
इस चक्र को तोड़ने का एक मात्र उपाय परहेज ही है, और यही बात आयुर्वेद चिकित्सक कहते हैं| 
अधिक अच्छा है की परहेज रखते हुए प्रारम्भ से ही अम्ल बड़ने न दिया जाये, इसके लिए आहार व्यवस्था, और नियमित व्यायाम सहित स्वस्थ्य जीवन चर्या अपनानी होगी| फिर भी यदि अम्लरक्तता हो गई है तो निम्न प्रकार से नियंत्रण कर लेना चाहिए इससे पाहिले की रोग चक्र शुरू हो|    


[1] - होम्‍योस्‍टेसिस शरीर में होने वाली दैनिक क्रिया है। शरीर में जब ब्‍लड शुगर की मात्रा अचानक बहुत ज्‍यादा और बहुत कम होती है तो पाचन ग्रंथि इन्‍सुलिन की मात्रा को नियंत्रित करती है। ब्‍लड शुगर की मात्रा अचानक कम और ज्‍यादा होने पर पाचन ग्रंथि होम्‍योस्‍टेसिस के लिए ग्‍लूकोज रिलीज करती है। जब ब्‍लड शुगर की मात्रा ज्‍यादा होती है तो लीवर इसे संश्‍लेषित करता है और होम्‍योस्‍टेसिस प्रक्रिया के लिए एकत्रित करता है। स्‍वस्‍थ्‍य बने रहने के लिए इन्‍सुलिन भी जरूरी होती है।
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चिकित्सा सेवा अथवा व्यवसाय?

स्वास्थ है हमारा अधिकार १

हमारा लक्ष्य सामान्य जन से लेकर प्रत्येक विशिष्ट जन को समग्र स्वस्थ्य का लाभ पहुँचाना है| पंचकर्म सहित आयुर्वेद चिकित्सा, स्वास्थय हेतु लाभकारी लेख, इच्छित को स्वास्थ्य प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य विषयक जन जागरण करना है| आयुर्वेदिक चिकित्सा – यह आयुर्वेद विज्ञानं के रूप में विश्व की पुरातन चिकित्सा पद्ध्ति है, जो ‘समग्र शरीर’ (अर्थात शरीर, मन और आत्मा) को स्वस्थ्य करती है|

निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

चिकित्सक सहयोगी बने:
- हमारे यहाँ देश भर से रोगी चिकित्सा परामर्श हेतु आते हैं,या परामर्श करते हें, सभी का उज्जैन आना अक्सर धन, समय आदि कारणों से संभव नहीं हो पाता, एसी स्थिति में आप हमारे सहयोगी बन सकते हें| यदि आप पंजीकृत आयुर्वेद स्नातक (न्यूनतम) हें! आप पंचकर्म चिकित्सा में रूचि रखते हैं, ओर प्रारम्भ करना चाह्ते हैं या सीखना चाह्ते हैं, तो सम्पर्क करेंं। आप पंचकर्म केंद्र अथवा पंचकर्म और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे अर्श- क्षार सूत्र, रक्त मोक्षण, अग्निकर्म, वमन, विरेचन, बस्ती, या शिरोधारा जैसे विशिष्ट स्नेहनादी माध्यम से चिकित्सा कार्य करते हें, तो आप संपर्क कर सकते हें| सम्पर्क समय- 02 PM to 5 PM, Monday to Saturday- 9425379102/ mail- healthforalldrvyas@gmail.com केवल एलोपेथिक चिकित्सा कार्य करने वाले चिकित्सक सम्पर्क न करें|

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